न जाने कौन सी रंजिश में दफ़न हैं जज़्बात,
कि सरेआम नज़र 'वो'अब नहीं आता।
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भी मैं वक़िफ़ क्यूँ थी तेरे उस छटपटाहट से,जो आधी रात मेरा फोन देख कर बेचैन हो जाते थे की शायद...
शायद मैंने कोई बुरा सपना देखा हो शायद मैं परेशान हूँ।
पर
दरअसल वो सपना,आज के सच से कुछ कम हैरान कर देने वाला था..
तो आज वो छटपटाहट क्यूँ नहीं?
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किश्तों में बिखरती ज़िन्दगी कुछ यूँ रूठती ही जा रही है,
मानो ये मेरी कम तुम्हारे ज़ख्मों के ज्यादा करीब है।-
मैं लिख कर ही, गम भुला देती हूँ..
सोचती हूँ पढ़ेगा, मुस्कुरा लेती हूँ।-
छत बड़ी हो या छोटी, पतंग कटनी तो तय है..
गर मोहब्बत निकली खोटी, फिर तो भय ही भय है।-
चलो कत्ल ही सही, एक काम तो कर दो...
हमेशा साथ रहने का, एलान तो कर दो।-
रिश्ता कुछ अटपटा सा बना,
कहना फिर भी आसान लगा।
अंजाम हर रोज़ डराता रहा,
रहना फिर भी अरमान लगा।-
देखने वाले ने भी देखा तो, उसमे अपनी शाम देखा...
चीखते मन के विपरीत, होठों पे उसके अपना जाम देखा।-