काश... ना उड़ते जुगुनू यह काश... यह चाँद स्थिर होता काश ना मन बहकता यह... तो शायद ना ज़िन्दगी में यह तिमिर होता,
काश... ना होती ख़्वाबों-ख्यालों की यह दुनियां ना वो... ना यह... दिल-ए-ज़िगर होता, काश... ना कोई राब्ता होता मुहब्बत से ना मिलता उससे... ना जुदा... मैं फ़िर होता,
कम्बख़त... जो नहीं था तक़दीर में उसका मलाल नहीं पऱ काश जो था... वो तो मेरा आख़िर होता? ए काश... ना उड़ते जुगुनू यह, ए काश... यह चाँद स्थिर होता!!
खुदा गवाह है इससे बड़ी सजा ही नहीं .. तुम मेरे सामने रहते हो मेरे पास नहीं .. बहुत नादान है यह दिल मचल ही जाता है.. दुआओ में तेरे सिवा कुछ मांगा ही नहीं.. तुमको ही सुनती रहूं कुछ ना कहूँ चुप ही रहूं.. किसी भी सूरत में इश्क में आराम नहीं.. कुछ नहीं चाहिए अब तुझसे मेरी उम्र ए रवा .. धड़कनों को मेरे बस अब और कोई मलाल नहीं..
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