बाहर कुछ न धरा
सारे श्राप वरदान खुद से ही है
मुक्ति भीतर में ही समाहित है
खुद को जानो समझो गहरे उतरो
विचारो की उहापोह में गोते लगाओ
मन शून्य होगा तो ईश्वर हो जाएगा
जन्म मृत्यु के बंधन से दूर हो जाएगा
बाहर मुखौटे है चेहरे नही छलावा है
आत्मा का तेरे अंदर को बुलावा है
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🔉⚔️क्षत्रिय⚔️
शिक्षक
लेखक, आशुकवि, etc
दिल को स्पर्श करें मेरे शब्द तो कमेंट ... read more
दुखियो के तुम भाग्य विधाता
मां गौरी है तुम्हारी माता
सच्चे मन से जो तुम्हे ध्याता
उसका काज सुफल हो जाता
सिद्धिविनायक नाम तुम्हारा
सिद्ध करो सब काम हमारा
कलयुग त्रास बहुत है भारा
हम भक्तो का कौन सहारा
विघ्नविनाशक हे भगवन्ता
कष्ट हरो हे एकदंता 🙏🙏
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उसे फिरसे जमाने की ख्वाइश है
उसे फिरसे डूब जाने की ख्वाइश हैं
जहां से लौटा था लुटकर वो कभी
वही वापस लौट जाने की ख्वाइश है
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प्रेम शाश्वत है ये कौन मानता है
प्रेम करना कैसे है कौन जानता है
प्रेम के बिना ये सृष्टि ही नही है
प्रेम को ईश्वर भी ईश्वर मानता है-
खो गया हूं कही
खुद को पाने में
मेरा कुछ भी नही
रखा इस जमाने में।।-
जिसे अँधेरे से परहेज है वो हर शाम रात बेचता है
मुँह ही तो है साहब कहने का किराया कहाँ लगता है
जिसकी नजर है खुद धुँधली वो नजारा बेचता है
पूर्वाग्रहों से ग्रसित वो जीने का इदारा बेचता है
मझधार में है नैय्या फिर भी किनारा बेचता है
फरेबी है वो आशिक नहीं दिल दोबारा बेचता है-
यहाँ तुम्हारा नही है कोई
डूबते हो तो डूब जाओ
यहाँ किनारा नही है कोई
मुट्ठी की रेत की तरह
ये पल पल फिसलता है
वक़्त हाफिज नही तुम्हारा कोई
यहाँ लाशों के ढेर पे
बनते है शहंशाह सभी
इस्तेमाल करो या हो जाओ
यहाँ और चारा नही है कोई
अपने दिल की फ़िक्र खुद करो
धोखा खाने फिरसे निकल जाएगा
दिल ही है न या आवारा है कोई
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जिसे दुनिया के मर्ज थे वो जीता चला गया
यहाँ मौसम क्या बदला साँसे उखड गयी।
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बहुत इंतजार हुआ बड़ी देर कर दीं
तुमने आते आते
तुम जहां थे वही हो हम खुद गिर रहे है
तुमको उठाते उठाते।।।-
जो खुद दर्द देते थे अब दवा बने बैठे है
जो काफ़िर थे पहले अब खुदा बने बैठे है-