बीन मौसम चले आते हैं बुलाये नही आते
तूफानो की अपनी चलती है ये बन्दिशो में नही आते,
और ढूँढने चले हैं हमे वो बीते कल मे,
उनसे कहो मरे हुए लोग बापस नही आते,,
शादाब कमाल-
''मरे नहीं थे हम
हमको मारा गया
जब गली से गुजरे
तभी जुल्फों को संवारा गया"
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मुझ से पूछो तो आजकल शहर कोई
शहर नहीं है चकाचौंध का,
शहर तो लोगो के मरे हुए बुझे हुए
"ख्वाहिशों" कि ढेर है,
जिसके मलबे पे ही चढ़कर लोग फिर से जाते हैं
अपने "ख्वाहिशों" को मारने....!!!
:--स्तुति-
न हैरानी से मरे न परेशानी से मरे,
हम तो यार केवल तुम्हारी बेईमानी से मरे।-
तुम्हे नहीं चाहत है, मोहब्बत की..!!
और हम मोहब्बत की, चाह में मरे जा रहे है..!!
वफ़ा की उम्मीद जो कर बैठे हम..!!
अब तो खुद ही बेवफा बने जा रहे है..!!
यें मोहब्बत हुई भी तो कहाँ हो गयी..!!
वो हद से ज्यादा, दर्द, दिए जा रहे है..!!
तुम्हे नहीं चाहत है, मोहब्बत की..!!
और हम मोहब्बत की, चाह में मरे जा रहे है..!!-
मेरे खुद के सोचने का तरीका मुझे एहसास करवाता है।
किसी मरे को दुनिया का कोई फरक नहीं पड़ता।-
सभी कसीदे गढ़ते रह गए
पोथी लुभाने खातिर
वो खुद भस्म होकर
पन्ने को आयाम देता रहा
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तेरे क्या हुए हम अब ख़ुद के भी न रहे
तू बेख़बर इस बात से हम जीते जी मरे-
मैं तो कहता हूं रोज एक "विकास दुबे"
जैसा मारा जाए, लेकिन वो ये बोल के
मरे कि वो किस नेता का गुर्गा था...
जय हिन्द-