Sandeep Singhaniya   (साहिल)
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Joined 25 March 2020


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Joined 25 March 2020
29 MAR 2022 AT 7:00

✒️आख़िरी पत्र✒️

तूझे फ़िक्र होगा
रूबरू होनें का
मैं हर पल
यूंहीं मिल जाऊंगा

हम एक दूजे से
प्रस्पर अलग कहां
तुम शब्दखण्ड
मैं भाव हो जाऊंगा

फिर भी जरुरत पड़े
मुझे ढूंढ लेना
मैं शब्द रूप में
दिख जाऊंगा

अगर फैसला करना
मंज़िल जाने का
मैं खड़ाऊ
बन जाऊंगा

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28 MAR 2022 AT 21:54

कभी कभी
कुछ रिश्तें
खामोशी में
यूंही गुजर जाती हैं
कुछ रिश्तें
इतना सरल
ख़ुद रूठ
फिर मनाने आती हैं

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28 MAR 2022 AT 14:00

🍂कर्म चाह

उसको फिक्र हैं
बेफिक्र करने का
और ये कहते हैं
मेरे बेफिक्री का
ना फिक्र करने का

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28 MAR 2022 AT 12:03

ऐसे नहीं
वैसा होता
काश मैं
वहां होता
सब निकलते
पाने खातिर
ना कुछ
मुक़म्मल होता

अगर भरोसा
उस पर होता
मैं पथ पर
अग्रसर होता
सुख दुःख की
बात नहीं
मैं भी होता
वो भी होता

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28 MAR 2022 AT 11:38

मैं धरा का वो सुक्ष्म कण
जिससे वो निर्माण हुआ
कण फिर कण ना टूटें
अब पथ आग़ाज़ हुआ

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27 MAR 2022 AT 22:06

संबंध

जो जीतना हीं
सरल होता
वो उतना हीं
नम्र होता ।

जीतना जिसको
जो अपना माने
वो उतना हीं
अपना होता ।।

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27 MAR 2022 AT 21:59

सब के पास
वो सब कुछ हैं
जिसका का उसे
आभास नहीं

फिर से दुहराता
मिला परिणाम
और वो तथ्य
उसके पास नहीं

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27 MAR 2022 AT 18:41

ना रोक मुझे
अब जाने दें
ये काल चक्र हैं
और को भी
आने दें

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27 MAR 2022 AT 18:20

A nose

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27 MAR 2022 AT 12:16

🔃 यथार्थ

मौसम एक वक़्त हैं
वक़्त से निरंतरता हैं
निरंतरता में सर्वस्व हैं
सर्वस्व में आशा हैं
आशा से जीवन हैं
जीवन हीं आनंद हैं
आनंद में भटकाव हैं
भटकाव से बिलगाव हैं
बिलगाव से परिवर्तन हैं
परिवर्तन हीं मौसम हैं
मौसम फिर वक़्त हैं

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