✒️आख़िरी पत्र✒️
तूझे फ़िक्र होगा
रूबरू होनें का
मैं हर पल
यूंहीं मिल जाऊंगा
हम एक दूजे से
प्रस्पर अलग कहां
तुम शब्दखण्ड
मैं भाव हो जाऊंगा
फिर भी जरुरत पड़े
मुझे ढूंढ लेना
मैं शब्द रूप में
दिख जाऊंगा
अगर फैसला करना
मंज़िल जाने का
मैं खड़ाऊ
बन जाऊंगा-
कहाँ तक**
यूहीं चलते जाऊँगा।
हिम्मत बांधे हैं,
ओ हमसफ़र**
निरंतर चल... read more
कभी कभी
कुछ रिश्तें
खामोशी में
यूंही गुजर जाती हैं
कुछ रिश्तें
इतना सरल
ख़ुद रूठ
फिर मनाने आती हैं-
🍂कर्म चाह
उसको फिक्र हैं
बेफिक्र करने का
और ये कहते हैं
मेरे बेफिक्री का
ना फिक्र करने का
-
ऐसे नहीं
वैसा होता
काश मैं
वहां होता
सब निकलते
पाने खातिर
ना कुछ
मुक़म्मल होता
अगर भरोसा
उस पर होता
मैं पथ पर
अग्रसर होता
सुख दुःख की
बात नहीं
मैं भी होता
वो भी होता-
मैं धरा का वो सुक्ष्म कण
जिससे वो निर्माण हुआ
कण फिर कण ना टूटें
अब पथ आग़ाज़ हुआ
-
संबंध
जो जीतना हीं
सरल होता
वो उतना हीं
नम्र होता ।
जीतना जिसको
जो अपना माने
वो उतना हीं
अपना होता ।।-
सब के पास
वो सब कुछ हैं
जिसका का उसे
आभास नहीं
फिर से दुहराता
मिला परिणाम
और वो तथ्य
उसके पास नहीं
-
🔃 यथार्थ
मौसम एक वक़्त हैं
वक़्त से निरंतरता हैं
निरंतरता में सर्वस्व हैं
सर्वस्व में आशा हैं
आशा से जीवन हैं
जीवन हीं आनंद हैं
आनंद में भटकाव हैं
भटकाव से बिलगाव हैं
बिलगाव से परिवर्तन हैं
परिवर्तन हीं मौसम हैं
मौसम फिर वक़्त हैं-