सुनो अबकी बार बनारस
घुमादो अपने साथ पिया
शाम को गंगा आरती
सुबह को अस्सी घाट पिया
गोदौलिया के छोले -कुल्चे
टमाटर वाला चाट पिया
सौंधी सौंधी चाय की खुशबू
भोजपुरीयाँ ठाठ पिया-
वो मणिकर्णिका मर के ज़िंदा है
ये मणिकर्णिका ज़िंदा होके भी हर रोज़ मरती है।।
कि राजा हो या रंक, साधु हो या संत सब साथ साथ जलते है.....
तुम जो ये दिल्ली में हिन्दू मुसलमान करते हो ना
आना कभी बनारस में दिखाते है तुमको
हमारे यहां हिन्दू भी कलमा घाटों पर पढ़ते हैं।।-
दुःखी मत होओ
मणिकर्णिका,
दुःख तुम्हें शोभा नहीं देता।
ऐसे भी श्मशान हैं
जहाँ एक भी शव नहीं आता
आता भी है,
तो गंगा में
नहलाया नहीं जाता— % &-
और हम दोनों उस बहती धारा में
एक-दूसरे का हाथ पकड़
चलेंगे एक ऐसे संसार में
जहां प्रेमी, प्रेमिका तथा प्रेम
पृथक-पृथक ना होकर
समाहित होंगे एक शून्य में...
हां! उस शून्य में
जो अमर होगा,
शाश्वत होगा,
इस संसार से परे होगा,
जहां कोई समाज नहीं होगा,
कोई बंधन नहीं होगा,
यदि कुछ होगा
तो केवल 'प्रेम'.....'विशुद्ध प्रेम'...!
(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)-
मृत्यु आखिरी विकल्प नही है
मृत्यु वो प्राथमिक अनिवार्यता है
जो मणिकर्णिका घाट पर हर रोज सजती है
मृत्यु मोक्ष है, ऐसा मोक्ष जो शिव के चरणों मे विराजमान है।-
पूछती हूँ मैं आज ,भला नाम में क्या रखा है
काशी में शिव की गंगा शिव की मणिकर्णिका
यहां बोलो प्रारब्ध और अंजाम में भेद क्या रखा है-
मैं मणिकर्णिका का दहन , तुम भगीरथ का तप
निज गंगा का नित प्रवाह कहो मानस होगा कब-
जीते जी मणिकर्णिका घूम आयी मैं
तेरे ह्रदय परिधि से निकल कर आज
खुद की वंचनाओं का दाह संस्कार कर आई मैं-
प्रेरणा.... 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
मैं रहूं या न रहूं
भारत ये रहना चाहिए
(फिल्म - मणिकर्णिका)-