मौन मौसम और मैं !
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पढ के जाइये..........
हम गाव को लिखते है, गंगा मे चलती नाव को लिखत... read more
तुम समझ पाओगे उस बारिश का दुःख ,,
जिसे रेत की प्यास बुझानी है ,,
या उस हवा की तड़प जो ,,
आंधियों में शामिल नहीं होता ,,
कभी देखा उस खाली कमरे को ,,
जहां वर्षों से कोई नहीं आया ,,
सुना है उन उल्लूओं का रूदन ,,
जो हर रात विलाप करता है ,,
तुम जानते हो फल के टूट जाने से ,,
पेड़ कितने उदास हो जाते हैं ,,
त्योहार के बीत जाने पर गांव ,,
कैसा लगता है ,,
क्या बितती है उस फूल पर ,,
जिसपर तितलियां नहीं बैठती ,,
या किसी तवायफ का एकांत ,,
कितना भयानक और भयावह होता है ,,
तुमने सोचा कालेज का वो आखिरी ,,
दिन कोई क्यों नहीं भूलता ,,
दफ्तर से लौट कर भी लोग ,,
घर क्यों नहीं जाते हैं ,,
अगर तुम ये सब नहीं जानते ,,
तो तुम्हें मुझे जानने का कोई अधीकार नहीं ।-
अजीब 'दुःख' है
नींद नहीं आती
वो कौन से ख्वाब मुझे
जगाए रखते हैं ,,
बच के रहिए
मेरे अज़ीज़ ऐसे लोगों से
जो चेहरे पे मुखौटा
लगाए रखते हैं ,,
जिंदगी बीत ना जाएं
कहीं तमाशे में
चलिए इस जिंदगी को
बचाए रखते हैं ,,
वही है जां वहीं धड़कन
वहीं मोहब्बत है
उन्हीं के दिल को हम अक्सर
सताए रखते हैं ,,
देखिए "अश्क" की कितनी
ख़राब हालत है
मगर मुस्कुराहट से रिश्ता
बनाए रखते हैं ।।-
तुम वो वक्त हो ,,
जिसे बर्बाद करने पर
अफसोस होता है ,,
तुम वो गीत हो,,
जो ताउम्र बजता
रहता है अंतर्मन में ,,
तुम वहीं हो जिसके लिए
मंदिरों और मजारों पर
लाखों मन्नतों के धागे बांधे गए ,,
तुम वहीं ज़रुरी काम हो ,,
जिसके लिए दफ्तर से
छुट्टी ली जाती है ,,
तुम वहीं हो ,,
जिससे फूल बातें करते हैं
तितलियां प्यार करतीं हैं ,,
मुसाफिर रास्ता पुछते है
और बच्चे खेलते हैं।
तुम चांद हो तुम कहकशां ,,
तुम रात हो तुम रौशनी ,,
तुम नज़्म हो तुम शायरी ,,
तुम इश्क हो ईमान हो ,,
तुम जान लो मेरी जानेमन
तुम आज से मेरी जान हो।-
मौला तुम्हारी दुनिया , कितनी कमाल है ,,
जितनी भी है निगाह यहां , सब में ख्वाब है ।।
उसके बदन को ओढ़े , मैं बदहवास हूं
कितना हसीन ख्वाब है , लेकिन ये ख्वाब है ।।-
मुझे नहीं चाहिए ,,
क्षणिक वेदना
मुझे नहीं चाहिए ,,
क्षणिक सुख
मुझे आपकी सांत्वना भी ,,
नहीं चाहिए
मुझे ज्ञात है एक दिन सब
ठीक हो जाएगा ।
मैं चाहती हूं ,,
किसी के प्रेम में
पूर्णतः डुबना।
मैं चाहती हूं ,,
कोई सहेज ले मुझे
उम्र भर के लिए।
मैं चाहती हूं ,,
मेरे आंखों में
इतना पानी हो
जिससे,भिगा सकूं
मैं हर सूखे मन को ।
मैं चाहती हूं ,,
कोई देर तक सीने से
लगाए रहे मुझे
और कहें कि सुंदर हो तुम।-
एक शहर ऐसा जहां ,,
मन के सारे उपद्रव ,,
समाप्त हो जाते हैं ।
एक शहर ऐसा जहां ,,
स्वयं मृत्युंजय
निवास करते हैं ।
एक शहर ऐसा जिसके ,,
पांव गंगा मईया
पखारती है ।
एक शहर ऐसा जहां ,,
रोज उत्सव मनाये जातें हैं ।
वहीं शहर जो ,,
अपना सा लगता है ।
हां , वहीं शहर ,,
जिसका पत्थर भी पारस है।
हां वहीं शहर ,,
जिसका नाम बनारस हैं ।-
मेरा पिया अब चांद नहीं है ,,
मेरी तन्हा रातें है ,,
मन मेरा एक बंजर भूमि ,,
और समन्दर आंखें हैं ,,
झूठ है सारे कसमें वादे ,,
प्रेम , प्रीत बस बातें हैं ,,
एक सड़क है ये दिल मेरा ,,
और मुसाफिर यादें हैं ,,
तारें छिप गए बुझ गया दिपक ,,
इक जोगन अब तक जागे हैं ,,
गजब विरह की पीर विधाता ,,
सब बे-बस इसके आगे है ,,
तनीक सुहाए बसंत ना मुझको ,,
कोयल ताना मारे है ,,
फूलतीं सरसों पुछे मुझसे ,,
वो कब आने वाले हैं ,,
ओ री सखी मुझे रंग ना रंग में ,,
ये फागुन मुझे काटे हैं ,,
"अश्क " से कहना खेलें होली ,,
भले गाल हमारे सादे है।-
ख्वाइश है माह ए पाक में ,,
खोया रहूं मैं आप में ,,
कुछ बात हो बे-मतलबी ,,
कुछ काम हो बेकार सा ,,
बस इश्क हो आराम से ,,
फ़ुरसत मीली है काम से ,,
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें ,,
दौरें इश्कियां चलता रहे ,,
एक चांदनी सी रात हो ,,
मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,,
अंजाम की परवाह कहां ,,
अब शह हो चाहे मात हो ,,
फिर मैं बजाऊं बांसुरी ,,
तुम गुनगुनाती रहो ग़ज़ल ,,
बस रात सब सुनती रहे ,,
इस फूल को चुनती रहे ,,
मैं चाहता हूं चांदनी ,,
यूं ही चकोर से मिलती रहे ,,
और फिर मुझे समझाए तु ,,
अब दिल्लगी को छोड़ दें ,,
सुन जींदगी पे काम कर ,,
अपना भी थोड़ा नाम कर ,,
फीर मैं तुम को चूम लू ,,
मन के गगग में घूम लू ,,
लिख दूं तुम पर शायरी ,,
अल्लाह मेरा यार भी ,,
तेरी तरह ही कमाल है ,,
मालिक तेरा शुक्रिया ,,
इसे पा के "अश्क "निहाल है ।-