SHASHANK JHA   (शशांक झा"अश्क")
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Joined 17 November 2020


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Joined 17 November 2020
22 APR AT 0:14

सुना है ,,
आजकल
कोई
तुम्हारा राह
तकता है।

सुना है ,,
आजकल
तुम
जान ए जा
बेहद
संवरते हो।।

-


6 APR AT 12:36

तुम चुप रहना क्योंकि
मणिपुर से तुम्हें ,,
कोई मतलब नहीं ।
तुम चुप रहना
लद्दाख में हो रहे ,,
अनसन और विरोध
प्रदर्शन पर ।
तुम इसलिए भी
चुप रहना ,,
कहीं कल आयकर विभाग
तुम्हारे दरवाजे पर
दस्तक ना दे।
तुम चाहते हो ,,
कि देश विश्व की
तीसरी अर्थव्यवस्था बनें ,,
तो भगवान के लिए
मंहगाई और बेरोजगारी पर
मत बोलना। तुम चुप रहना ,,
और इस चुप रहने की
प्रक्रिया में ,,
एक दिन तुम देखोगे कि
सच में तुम गूंगे हो गये हो।

-


4 APR AT 23:29

मुझे नहीं चाहिए ,,
क्षणिक वेदना
मुझे नहीं चाहिए ,,
क्षणिक सुख
मुझे आपकी सांत्वना भी ,,
नहीं चाहिए
मुझे ज्ञात है एक दिन सब
ठीक हो जाएगा ।

मैं चाहती हूं ,,
किसी के प्रेम में
पूर्णतः डुबना।
मैं चाहती हूं ,,
कोई सहेज ले मुझे
उम्र भर के लिए।
मैं चाहती हूं ,,
मेरे आंखों में
इतना पानी हो
जिससे,भिगा सकूं
मैं हर सूखे मन को ।
मैं चाहती हूं ,,
कोई देर तक सीने से
लगाए रहे मुझे
और कहें कि सुंदर हो तुम।

-


2 APR AT 13:15

एक शहर ऐसा जहां ,,
मन के सारे उपद्रव ,,
समाप्त हो जाते हैं ।
एक शहर ऐसा जहां ,,
स्वयं मृत्युंजय
निवास करते हैं ।
एक शहर ऐसा जिसके ,,
पांव गंगा मईया
पखारती है ।
एक शहर ऐसा जहां ,,
रोज उत्सव मनाये जातें हैं ।
वहीं शहर जो ,,
अपना सा लगता है ।
हां , वहीं शहर ,,
जिसका पत्थर भी पारस है।
हां वहीं शहर ,,
जिसका नाम बनारस हैं ।

-


18 MAR AT 18:09

मेरा पिया अब चांद नहीं है ,,
मेरी तन्हा रातें है ,,
मन मेरा एक बंजर भूमि ,,
और समन्दर आंखें हैं ,,

झूठ है सारे कसमें वादे ,,
प्रेम , प्रीत बस बातें हैं ,,
एक सड़क है ये दिल मेरा ,,
और मुसाफिर यादें हैं ,,

तारें छिप गए बुझ गया दिपक ,,
इक जोगन अब तक जागे हैं ,,
गजब विरह की पीर विधाता ,,
सब बे-बस इसके आगे है ,,

तनीक सुहाए बसंत ना मुझको ,,
कोयल ताना मारे है ,,
फूलतीं सरसों पुछे मुझसे ,,
वो कब आने वाले हैं ,,

ओ री सखी मुझे रंग ना रंग में ,,
ये फागुन मुझे काटे हैं ,,
"अश्क " से कहना खेलें होली ,,
भले गाल हमारे सादे है।

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15 MAR AT 23:28

ख्वाइश है माह ए पाक में ,,
खोया रहूं मैं आप में ,,
कुछ बात हो बे-मतलबी ,,
कुछ काम हो बेकार सा ,,
बस इश्क हो आराम से ,,
फ़ुरसत मीली है काम से ,,
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें ,,
दौरें इश्कियां चलता रहे ,,
एक चांदनी सी रात हो ,,
मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,,
अंजाम की परवाह कहां ,,
अब शह हो चाहे मात हो ,,
फिर मैं बजाऊं बांसुरी ,,
तुम गुनगुनाती रहो ग़ज़ल ,,
बस रात सब सुनती रहे ,,
इस फूल को चुनती रहे ,,
मैं चाहता हूं चांदनी ,,
यूं ही चकोर से मिलती रहे ,,
और फिर मुझे समझाए तु ,,
अब दिल्लगी को छोड़ दें ,,
सुन जींदगी पे काम कर ,,
अपना भी थोड़ा नाम कर ,,
फीर मैं तुम को चूम लू ,,
मन के गगग में घूम लू ,,
लिख दूं तुम पर शायरी ,,
अल्लाह मेरा यार भी ,,
तेरी तरह ही कमाल है ,,
मालिक तेरा शुक्रिया ,,
इसे पा के "अश्क "निहाल है ।

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6 MAR AT 20:34

चल बबुनी पिया अंगना
कैप्शन में पढ़ें...

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27 FEB AT 13:06

बेख़ौफ़ था वो बचपन ,,
किसी बात का ना डर था ,,
एक तितली थी दोस्त मेरी ,,
फूलों पे उसका घर था ,,
उन दिनों में मुझको ,,
आती थी नींद अच्छी ,,
ख्वाब आते थे प्यारे ,,
नादान जो उमर था ,,
मुठ्ठी में रेत भरकर ,,
पानी से खेलते थे ,,
कितने सुनहरे दिन थे ,,
कितना हसीं सफ़र था ,,
कभी नन्ही सी एक बुलबुल ,,
यहीं तकती थी मेरा रस्ता ,,
यहां जुगनू थे जगमगाते ,,
कभी पहले यहां शजर था ,,
मिट्टी का था खिलौना ,,
सितारों से बात होती थी ,,
"अश्क" अब भी याद आता है ,,
जब खुशी अपने साथ होती थी।

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9 FEB AT 11:04

जाना ,,
तुम्हारे हिज़्र का
मौसम बड़ा कमाल है

कभी ,, कड़कड़ाती ठंड है
कभी ,,तर-बतर सी दोपहर
कभी है कही उदास सुबहे
कभी खुशनुमा सी शाम है

जाना ,,
तुझे यूं भूलना
इतना कहां आसान है

हर लफ्ज़ में तेरा ज़िक्र है
हर बात में तेरी बात है
जाना तुम्हारी याद भी
बे-मौसम बरसात हैं।

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24 JAN AT 6:02

पौष की एकादशी

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