कुंवर विदोष अभिज्ञान   (अभिज्ञान 🌞)
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Joined 18 April 2017


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माँ जन्मदात्री है तो
पिता पालनहार
मां ममता से
वशीभूत
पिता कर्तव्य के प्रति
सचेत

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राधा न होती तो
कृष्ण को कौन जानता
सीता न होती तो
राम को कौन मानता
लक्ष्मी न होती तो
(नगद) नारायण कहां से आते
गौरी न होती तो
शंकर कहीं गुमनमी में खो जाते
साधना के बिना
तपस्या कैसे होती

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कलियुग में राम की पूजा तो होगी पर राम नहीं होंगे
दशहरे पर रावण के पुतलों को तो जलाएंगे
पर अगले दशहरे तक अनगिनत रावणावतार
धरा पर फिर हो जाएंगे
नहीं होगा तो रामावतार और न होंगे राम
सिर्फ रामलीला में छद्मवेश में राम को दिखाया जाएगा
काश त्रेतायुग में भी दूरदर्शन होता तो
मीडिया पर शूर्पणखा की कारस्तानी को दिखाया जाता
रावण शूर्पणखा की कारस्तानी पर शर्मिंदा होता
और शायद सीताहरण भी नहीं होता

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सारे मौसम सुहाने लगते हैं
रात दिन कब गुजर जाते हैं
पता ही नहीं चलता

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जबसे मीर गालिब़ जफर और जोक को
पढ़ा है हमने
कसम खुदा की हम भी शायर हो गए

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नदी भी है समंदर भी है मेरे शहर में
तू आकर तो देख
हर तरफ जिंदगी सुकून फर्मा रही है
कुछ दिन ठहर कर तो देख

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गुरुर तो नहीं है
पर इतना यक़ीन जरूर है
अगर याद नहीं करोगे तो
भुला भी नहीं पाओगे

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