रचना अनु शीर्षक में पढ़ें..
-
मैं मुफलिसी का बोझ उठाये फिर रहा हूँ
अपनी उम्र को नजरअंदाज करते फिर रहा हूँ
परिवार की दो वक्त की रोटी जुटाने
मैं अपने सपनो को चूर-चूर करके फिर रहा हूँ।-
"मजदूरों" की बस "कथा" नहीं,
अगर उनकी समझनी है "व्यथा" भी,
तो कम से कम एक दिन के लिए
"हुजूर" को भी बनना चहिए "मजदूर"...!!!
(:--स्तुति)-
अग्निकुंड की अग्नि सी
चिलचिलाती तपती दुपहरी
जब निचोड़ दे देह पूरी
स्वेद ग्रंथियों पर
जम जाए काली पपड़ी
पिचक गये हों
रसांकुर सारे
ह्रदय प्रकुंचन के दौरान
रक्त नहीं
धमनियों में दौड़ने लगे
साहस
हड्डियों में भरे द्रव ने
जैसे-तैसे संभाल रखा हो मोर्चा...
तब भी वो मजदूर मां
नवजात के लिए
बचा लाती है
अपनी छाती की
"तरलता"-
मजदूर हूँ साहब मेहनत की तलाश रखता हूँ,
पथरीले रास्तों में मंज़िल की आस रखता हूँ।-
कड़कती धूप में पसीने बहा कर
मेहनत से अपने किस्मत लिखते हैं।
हम मजदूर हैं मजदूरी कर के खाते हैं
आराम कर हराम का नहीं।
सौभाग्य है हमारा
हम कर्म ईमानदारी से कर के
सुबह से शाम करते हैं।
हम मजदूर हैं मजदूरी कर के खाते हैं
आराम कर हराम का नहीं।-
#मै एक मजदूर हूँ।
मै एक मजदूर हूँ।
आँसमा के छाव मे
खेतो के फसलो मे
पशुओ की सेवा मे
बादलो की गरजना मे
सुरज की किरनो मे
धरा के जल मे
कर्म मे तल्लीन
मगन एक मजदूर हूँ।
मुझमे एक किसान
एक श्रमिक एक जुझारू
व्यक्ति की आत्मा बसती है
हाँ मै एक मजदूर हूँ।
पिढीयो से ब्याज चुकानेवाला
दिनभर मेहनत करके रातभर खाँसने वाला
मजबूरी मे हक भी डर कर मांगनेवाला
आधा पेट खाकर रातभर जागनेवाला
रोज कमाकर रोज खानेवाला
हाँ मै एक मजदूर हूँ।
-