उस मुलाक़ात का मंज़र कुछ ऐसा होगा |
दर्द से दर्द मिलकर ,
इश्क़ फ़िर से ज़िंदा होगा |-
जमीन लगभग पूरी तरह भीग चुकी थी..
एक चींटा
पतली सी घास के सहारे
चलने की कोशिश कर रहा था बार बार..
यह भूलकर कि मुझे कहीं जाना है
मै रूकता हूँ...
और.. झाँककर पूछता हूँ
क्यों भाई चीटे !.... कैसे हो..?
चीटे पर दया करने के सुखद अनुभव से
मै अभी रोमांचित ही था कि..
मैने सुना—
जूते— पैरों के कानों मे फुसफुसाकर कह रहे थे
ईश्वरऽऽ.. है
उस पर यकीन करो.. । कविता ✍🏻
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अपनी ही परछाई के हाथों में खंजर देखें है
उम्र भले ही कम हो हमने सारे मंज़र देखें है-
Pighlenge Badaal aur Aasmaan per ghir se Jayenge... Be-matlab ke Manzar bhi Nazaaro se ban Jayenge.
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मंज़र आगे ज़िंदगी का क्या होगा,
जब आलम अभी से ही यह है!!
इसी कशमकश में बेचैन बेबस
सा चलता जा रहा हूँ मैं!!
खुद समुंदर सा पलकों में छुपाये,
दुनिया को मुस्कराने की वजह
देता चला जा रहा हूँ मैं!!
दुनिया फिर भी ताने मारती है,
अपने फ़ायदे के लिए ही शायद
सबको हंसाते चला जा रहा हूँ मैं!!-
#11-05-2021 # काव्य कुसुम # संवेदना #
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जो कुछ देखती रहती है मेरी आँखें वो जुबाँ कह नहीं सकती।
जो कुछ जुबाँ कह नहीं पाती मेरी आँखें वो मंज़र सह नहीं सकती।
संवेदना के धरातल पर इंसानियत भी शर्मसार हो जाती है जब -
जो कुछ संवेदना समायी है उर में मेरे वो यूँ ही बह नहीं सकती।
======== गुड मार्निग =======-
जीवन के इस मंज़र ए मौत के सफर मे,
नफ़रतों के कांटे समेट, मोहब्बत के खुशबू बिखेरो,
किसने कब दिल दुखाया सारी बातें पीछे छोड़ो
वक़्त की नज़ाकत् है ये भी बदल जायेगा,
झूमेंगे गले लग एक दिन वो भी पल आयेगा.-
ख़िज़ां के ज़रद,
पत्तों का वो मंज़र याद करता है
उसे कहना,
उसे अब भी दिसंबर याद करता है।-