मैंने शहर को देखा
और मैं मुस्कराया
वहां कोई कैसे रह सकता है
यह जानने मैं गया
और वापस न आया-
बुढ़ापे के समय पिता के चश्मे एक-एक कर बेकार होते गए,
आँख के कई डॉक्टरों को दिखाया विशेषज्ञों के पास गए...
(अनुशीर्षक में पढें)
-मंगलेश डबराल-
एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ
अ से अनार अ से अमरूद
लेकिन लिखने लगता हूँ अ से अनर्थ अ से अत्याचार
कोशिश करता हूँ कि क से क़लम या करुणा लिखूँ
लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से क्रूरता क से कुटिलता
अभी तक ख से खरगोश लिखता आया हूँ
लेकिन ख से अब किसी ख़तरे की आहट आने लगी है
#मंगलेशडबराल-
“तुम्हारा प्यार लड्डुओं का थाल है
जिसे मैं खा जाना चाहता हूँ
तुम्हारा प्यार एक लाल रूमाल है
जिसे मैं झंडे-सा फहराना चाहता हूँ
तुम्हारा प्यार एक पेड़ है
जिसकी हरी ओट से मैं तारॊं को देखता हूँ
तुम्हारा प्यार एक झील है
जहाँ मैं तैरता हूँ और डूब रहता हूँ
तुम्हारा प्यार पूरा गाँव है
जहाँ मैं होता हूँ...!”
- मंगलेश डबराल
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"मैंने शहर को देखा
और मुस्कुराया
वहाँ कोई कैसे रह सकता है
यह जानने मैं गया
और वापस न आया"
~ मंगलेश डबराल
समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर मंगलेश डबराल जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। ॐ शांति:।-
आंखे ये सागर सी गहरी हैं..ना जाने कितने राज छुपे हैं
ये आंखें बिना कुछ कहे सब कुछ बोल जाती हैं...जाने ये बिना कुछ बोले बोलने की भाषा सिखलाती हैं,
ये आंखें जब काजल से सज जाती हैं...सब के मन को लुभाती हैं..ये आंखें इक अनमोल तोहफा है...ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से मिलाती हैं...कभी तारों सी टिमटिमाती हैं कहीं मासूमियत सिखा जाती हैं...ये आंखें हैं जो मेरी दुनिया को और सुन्दर और खूबसूरत बनाती हैं..ये आंखें औंस कि बूंदों सी भर जाती हैं... जानें किसी पल की यादों में भीग जाती है..ये आंखें....-
मैंने शहर को देखा
और
मैं मुस्कराया
वहाँ
कोई कैसे रह सकता है
यह जानने मैं गया
और वापस न आया।।
🔹 #अलविदा मंगलेश डबराल 🌻-
अलविदा कहना आसान नहीं है
जितना की हम अलविदा कह देते है
खासकर उनसे जिनसे हम सीखते हैं
समझने की कोशिश करते है उनकी भाषा
का भाव और करते है
कोशिशें
ना समझ लिखने की,
आपकी कविताओं के साथ
आप हमारे साथ सदैव रहंगे।
अलविदा! 👏
#मंगलेशडबराल जी
©lafzon_ka_safar-