क्यूँ उदासियाँ, मुस्कुराहटें आ जा रही हैं
बारी बारी अपना चेहरा बदल के,
बेपरवाह सा मैं क्यूँ चल रहा हूँ संभलते संभलते,
अकेला हूँ सफ़र में
फिर भी इंतजार कर रहा हूँ ठहर ठहर के,
क्यों अपना लिए काले और सफेद रंग
तुम्हारी पसंद के रंगों से बदल के,
क्यूँ नहीं तुम आँखे अब़ मेरी पढ़ सकते,
जो रास्ते चुने थे हम दोनों ने कभी,
तन्हा ही सही पर चल रहा हूँ
अब भी वही रास्ते,
तुम क्यों नहीं समझते।
-