Rahul Kharwar   (लफ्फाज....🌸)
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मुंतज़िर, यायावर,औघड़, एकांत जीवी,
वसंत प्रेमी..
Joined 11 May 2019


मुंतज़िर, यायावर,औघड़, एकांत जीवी,
वसंत प्रेमी..
Joined 11 May 2019
9 NOV 2022 AT 9:53

Really, Sad to know Yq is Shutting down from 1st Dec. Really i m going to miss this platform. Yq will always be special to me because I wrote here my first ever piece of writing, Yq helped me to realise me that I can also write. My memories with Yq will always have a special place in my 💓.

Regardless of the level of my writing, if I write, the credit goes to Yq.
I insist Yq not to shut down, this is the only platform where we can write without any fear of judgement ,write what we feel from our heart.

I m going to miss my friends whom I made at this platform. If you want you can connect with me on other platforms and my friends,please mention links of your social media in the comments so that I can connect with you too.
Thankyou

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20 OCT 2022 AT 19:44

चल रहे थे हम साथ साथ
रूका हुआ था पल, रूका था समां
रूका हुआ था चाँद आसमाँ में,
रूके हुए थे सितारे,
रूकी हुई थी रात मुकम्मल,
तन्हा थे हम ,तन्हा थी रात
मेरे बेकरार ख्वाबों ने छूना चाहा उसे हाथ बढ़ाकर
पर वो रूख मुझसे मोड़ गया,
हिस्से मेरे बस इंतजार छोड़ गया,
लबों पर बात अधूरी छोड़ गया

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19 OCT 2022 AT 18:35

कि हम किसी से नहीं मिलते
हर शख्स में तुमको ढूँढते फिरते हैं हर रोज़
शाम़ को शिकायतें करते हैं तुमसे
तन्हाईयों में यादों को ओढ़ कर तुम्हारी ही
हर शब को लिपटकर सोते हैं तुमसे,
हम तुमसे मिलते हैं हर रोज़
पर तुम हमसे कभी नहीं मिलते।

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18 OCT 2022 AT 18:40

आँखों की अलमारी से निकाल देता हूँ जिसे हर रोज़
बस वही ख्वाब़ बस रातों में मेरे पास बचता है,
तुम्हें देख कर रूक जाती है दिल की धड़कनें,
तुम्हें ना देख कर दिल़ तड़पता है,
कभी-कभी यूँ भी होता है।

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17 OCT 2022 AT 18:19

मेरे आँखों के सामने तो
कभी मेरे पड़ोस में ,
पहचानता रहा हूँ हमेशा से ही उसे,
पर प्यार हमेशा मेहमान बन कर ही आया,
छोड़ गया बस पीछे यादों का साया,
मैं इंतजार करता रहा उसका़ इक मुद्दत
पर जब आँख लगी फुर्सत में कभी
तब़ उसने दरवाजा खटखटाया ,
सोचा रोक लूँ उसे
पर रेत़ की तरह हर बार वह हाथों से फिसल जाया,
प्यार हमेशा मेहमान बन कर ही आया।

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11 OCT 2022 AT 19:30

डूब जाता था दिल जब बरसते थे बादल
एैतबाऱ नहीं रहा अब़ मौसमों का भी
पतझड़ हुआ है सावन
पतझड़ों की उदासी यूँ तो भी कम़ नहीं
एैसी कोई वजह तो नहीं
कि उदासियों में भी मुस्कुराया न जाए
मौसमों की तरह खुद को भी बेए'तिबार बनाया जाए।

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10 OCT 2022 AT 18:29

छाँव कर दी सर पऱ यादों की
वरना वक्त की कड़ी धूप में
फुर्सत कहाँ थी आसमांँ ताकने की

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8 AUG 2022 AT 20:25

धुंध गहरी जब़ हो जाए मेरी जिंदगी की
अलसाई हुई सी किसी सुबह में
बिन दस्तक दिए
जाड़े की धूप की तऱह तुम आ जाना
मैंने खुली रखी है उम्मीदों की खिड़की ।

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4 AUG 2022 AT 19:32

तुम्हारी करवटों के
सहारे संभले हुए हैं ख्वाबों मेरे
कितनी बार कहा है तुमसे
यूँ सोते सोते जाग जाया न करो,
ख्वाबों में मुलाकात बात होती है जो हमारी
तुम ये खुद को भी कभी बताया न करो।

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3 AUG 2022 AT 20:37


क्यूँ उदासियाँ, मुस्कुराहटें आ जा रही हैं
बारी बारी अपना चेहरा बदल के,
बेपरवाह सा मैं क्यूँ चल रहा हूँ संभलते संभलते,
अकेला हूँ सफ़र में
फिर भी इंतजार कर रहा हूँ ठहर ठहर के,
क्यों अपना लिए काले और सफेद रंग
तुम्हारी पसंद के रंगों से बदल के,
क्यूँ नहीं तुम आँखे अब़ मेरी पढ़ सकते,
जो रास्ते चुने थे हम दोनों ने कभी,
तन्हा ही सही पर चल रहा हूँ
अब भी वही रास्ते,
तुम क्यों नहीं समझते।

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