Joshi Ramesh Joshi   (Joshi ramesh joshi)
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धर्मो रक्षति रक्षितः
DOB.30 jun
Joined 20 April 2018


धर्मो रक्षति रक्षितः
DOB.30 jun
Joined 20 April 2018
28 MAY 2021 AT 16:21

दरारों में उग आते हैं,
जो पौधे
वह अपनी सक्षमता का प्रमाण
किसे दें.
यह जानते हुए भी कि उन्हें
उखाड़ फेंक देने के लिए
बहुत हाथ आतुर है,
वो फ़िर भी आते हैं
दरारों में.
कम पानी और कम धूप के वीच.

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8 MAR 2021 AT 9:27

कभी भी
यूं सहजता से
मिटा कर निज अस्तित्व
स्वयं चल
इस खारे समुंद्र में
विलय नहीं होती,

नदी यदि तुम
स्त्री ना होती ..!

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13 JAN 2021 AT 14:34

यह पवन परम अनुकूल देख,
रे, देख भुजा का बल अथाह,
तू चले बेड़ियाँ तोड़ कहीं,
रोकेगा आकर कौन राह ?
डगमग धरणी पर दमित तेज
सागर पारे-सा उठे डोल;
उठ, जाग, समय अब शेष नहीं,
भारत माँ के शार्दुल ! बोल ।

रामधारी सिंह दिनकर🙏

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12 JAN 2021 AT 8:20

"उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए”
सम्पूर्ण विश्व को योग, वेदान्त, हिंदुत्व तथा उसके जीवन दर्शन के सत्य स्वरूप से परिचय कराने वाले विश्व विख्यात महान आध्यात्मिक गुरु, महान वक्ता व विचारक, साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान स्वामी विवेकानन्द जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन।

राष्ट्रीय_युवा_दिवस

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10 JAN 2021 AT 22:26

ये
हमारी
ख़ुश-नसीबी है
हिंदी ने,
अपने दिल की बात
कहने - सुनने
बोलने - बतियाने के लिए
हमें चुना है।

विश्व हिंदी दिवस

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25 DEC 2020 AT 11:08

"मैं अखिल विश्व का गुरू महान,
देता विद्या का अमर दान,
मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग
मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर,
मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार
क्या कभी सामने सका ठहर ?"

*भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी को कोटिश: नमन*

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12 DEC 2020 AT 19:04

मुझे आसमाँ सबसे प्रिय है
रंगों से सराबोर रहता है..
चाँद अपने आगोश में लिये
कभी धानी रंग बिखेरता
तो कभी लाल..
कभी तारों संग अठखेलियाँ करता
कभी निपट अकेला सा ताकता
अपनी धरती को...
बादलों से सिफारिश कर
बारिश से तृप्त कर देता.
रंग बिखेर देता। ❤️

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11 DEC 2020 AT 17:27

एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ
अ से अनार अ से अमरूद
लेकिन लिखने लगता हूँ अ से अनर्थ अ से अत्याचार
कोशिश करता हूँ कि क से क़लम या करुणा लिखूँ
लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से क्रूरता क से कुटिलता
अभी तक ख से खरगोश लिखता आया हूँ
लेकिन ख से अब किसी ख़तरे की आहट आने लगी है
#मंगलेशडबराल

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10 DEC 2020 AT 20:55



कुछ बूंद हिचकियां मिला दे..
हवाओं में...
तेरे पास होने का एहसास...
सांसों को हो जाए

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10 DEC 2020 AT 14:33

"मैंने शहर को देखा
और मुस्कुराया
वहाँ कोई कैसे रह सकता है
यह जानने मैं गया
और वापस न आया"

~ मंगलेश डबराल

समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर मंगलेश डबराल जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। ॐ शांति:।

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