QUOTES ON #भेंट

#भेंट quotes

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16 DEC 2020 AT 14:58

प्रकृति का अनुपम उपहार हूं
कल भी निश्चल थी
आज भी आजाद हूं
अवरोध कोई लगा ना पाए
मेरे वाचलता को
पर मेरे सवाल कई
क्यों मेरे पीने योग्य पानी को
प्रदूषित कर रहे हो
क्यों मेरे मीठे पानी को दूषित कर रहे हो
काश! की इस पानी का मोल समझ पाते
आज जिसमें कपड़े धो रहे हो
आने वाले समय में ना मैं रहूंगी
ना रहेगा कोई और पीने योग्य पानी का स्त्रोत
जिस तरह से तुम पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हो

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10 AUG 2021 AT 20:32

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7 FEB 2017 AT 8:39

कुछ दोस्तों ने भेंट की थी, मुझे एक ऐसी चादर,
बाहर दोस्ती के गुलाब, दुश्मनी के काँटे थे अंदर।

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1 JUL 2021 AT 2:28

लिखना, तुम्हे लिखना
मुझे बहुत भाता है।
शब्द सागर से शब्दों को
चुन-चुनकर लाता हूँ।
उन्हीं शब्दो से फिर तुम्हें
मैं लिखा करता हूँ।
तुम्हें लिखना मुझे बहुत
लिखना,तुम्हें लिखना
मुझे बहुत भाता है।
कुछ इसी तरह मैं
अपने शब्दों से तुम्हे
भेंट दिया करता हूँ।

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23 JUN 2020 AT 7:23

कुछ नादान कुछ नटखट,
जहाँ दिखती है कोई गोपी इसको,
भागा आता है ये झटपट..

निर्मल हृदय कान्हा जैसा,
बातें भी इसकी उनके जैसी प्यारी,
प्रेम भी बरसाए उन जैसा..

कलम इसकी का क्या कहना,
प्रेम के अथाह सागर में है वो रहती,
शब्द-शब्द का मंथन करती..

नैनों के सम्मुख जो शब्द लाती,
आत्मा की गहराई तक प्यास बुझाती,
फिर भी तृप्ति नहीं वो पाती..

हर कोट का कैप्शन इसका,
सबके मन-मस्तिष्क को है बेहद भाता,
प्रेम का हृदय को तीर्थ करवाता..

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16 AUG 2019 AT 15:13

कितने दयालु हो जाते हैं हम
दुःख भरा समय पार होने के बाद
यादों पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को भी
भेंट दे दिया करते हैं
मन का एक कोना
एक लम्बी आह
एक पुरानी धुन

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8 OCT 2020 AT 0:34

आपको उपहार देने के लिए
उधार स्वरूप लेना पड़ता मुझे

स्थिरता, पर्वतों से
विविधता, तितली के पंखों से
वाचालता, झरनों से
सहनशीलता, पृथ्वी से
ओजस्विता, सूर्य से
मधुरता, पपीहे से
विस्तृतता, हरी दूब से

प्रकृति की ऋणी होने से बचने के लिए
मैंने भेंट किया आपको

स्थिरता, मेरे मन की
विविधता, मेरे भावों की
वाचालता, मेरी चूड़ियों की
सहनशीलता, मेरे माथे के बिंदी की
ओजस्विता, मेरे आंखों के काजल की
मधुरता, मेरे पायल के घुँघरू की
और,
विस्तृतता, मेरे प्रेम की।
-निकिता शर्मा



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24 AUG 2017 AT 0:45

सुना हैं वो लोग ही
हमारे मंदिरों में मजदूर होते हैं
जो ख़ुद कही
मंदिर न बनने के लिए बदनाम हैं !

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एक दफा और
तोड़ेगा वो दिल मेरा,
एक दफा फिर
मैं टूट के बिखरूँगी,
वाकिफ़ हूँ इस बात से
पर कौन समझाए इस दिल को!
इसे मंजूर है
उसकी दी हुई हर भेंट।।

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30 JAN 2022 AT 11:16

मैं बरसों______ईश्वर की चौखट तकती रही
दुख, हाथ खींच कर______ मुझे अंदर ले आया— % &

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