तुम्हारे बोसो की तलब, मेरी मुस्कान को नोच गई,
आह में उलझी ये जुबा , मेरी रूह को जर्द कर गई !!-
तुमने जब- जब भी मुझे ...
प्रेम के बोसे दिए हैं..
उन बोसों को इकट्ठा करके..
मैंने लिखी है..
एक प्रेम कविता..
सुनो,
जब भी तुम याद आते हो..
मैं लिख लेती हूं..
एक प्रेम कविता..
तुम्हारे नाम..-
धरती का आसमाँ के माथे पर दिया गया बोसा
रौशन करता है जहान को ,नूर-ए-चाँद बन कर-
बोसा तो ख़ैर एक अलहदा कहानी है,
उनका बदन छुअन से बेजान होता है।
بوسہ تو خیر ایک علیحدہ کہانی ہے,
ان کا بدن چھوان سے بے جان ہوتا ہے!-
जो भी मिलता मोहे, मोहे वो तोसा लगता है।
छूती है बारिश तो, तेरा वो बोसा लगता है।-
चलो अजनबी बनके फिरसे मुलाकात करते हैं
इधर उधर की छोड़ो हम प्यार की बात करते हैं.
तुम डूब जाओ इस कदर मेरी मदभरी निगाहों में
हाय ! फिर धीरे से इश़्क की शुरुआत करते हैं
सर्द रातों में चाँदनी पर छाया है चाँद का खुमार
उफ़्फ ! यारा आगोश को मिलन की रात करते है
समाँ लौटकर कहाँ आता हैं मश्गुल गुफ्तगू का
जवाब़ दो पलकोंपर ये ख्व़ाब सवालात करते हैं
आज रख दो धीरेसे इन लबों पर मीठ़ा सा बोसा
थोडी सिहरन आयें भितरसे फिर बरसात करते हैं-
बोसा जो लबों पर दिया उसने,कमबख्त नींद ही उड़ गई..
ऐंसा लगा जैसे कोई पुरानी शराब बिन पिये ही चढ़ गई..
हमने कहा रोज़ एक बोसा दिया करो,तुम्हारा क्या जाएगा..
कमबख्त शराब बहुत महँगी है,हमारा खर्चा कम हो जाएगा..
💕💕-