Srishti Singh   (©सृष्टि सिंह)
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Joined 22 June 2019


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Joined 22 June 2019
30 SEP 2023 AT 17:43

अस्वीकृति को स्वीकार करने की सहजता ही "प्रेम" है ।

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28 AUG 2023 AT 20:35

काश कि
मैं लिख पाती कोई ऐसी कविता
जिसे पढ़
तुम कर पाते अनुभव मेरी पीड़ा का
और लौट आते मेरे जीवन में
पुनः वैसे ही जैसे
पतझड़ में विदा हुई पत्तियां
लौट आती है
वसंत के आगमन
भर से

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17 JUL 2023 AT 19:33

....

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17 JUL 2023 AT 19:30

सनातन धर्म पथ-दर्शक, बनाते काम हैं सबके
निहित जो हैं चराचर में, नयनाभिराम हैं सबके
मिटा विद्वेष उर का जो प्रथम रखते हैं मानवता
मेरे उस राम के हैं सब, मेरे वो राम हैं सब के

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11 JUL 2023 AT 11:02

तेरा हो प्यार कम ना हमारे लिए
मैं जीयूं तेरी हो, तुम हमारे लिए
देना ही चाहते कुछ अगर भेंट में
चिट्ठियां भेजना तुम हमारे लिए

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10 JUL 2023 AT 19:03

प्रतीक्षारत हैं नयन ये तुम्हारे लिए,
व्यग्र सांसों का क्रम है तुम्हारे लिए।
'हर जनम तुम मिलो'कामना से इसी,
मैंने व्रत है रखा बस तुम्हारे लिए।।

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14 FEB 2023 AT 20:43

तुम्हें यूं देख कर पहली दफा, मन में हुई हलचल
कि कहना चाहते तुमसे धड़कते दिल के मेरे स्वर
उचककर चूम लूं मैं भाग्य कर दूं प्रीत की दस्तक,
तुम्हें पलकों तले रख लूं, तुम्हारी स्वीकृति हो गर।।

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9 JUL 2022 AT 23:34

"आत्मसम्मान की विजयगाथा "

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26 JAN 2022 AT 1:14

"प्रेम में विश्वास को बनाये रखना हमारी आत्मीय जिम्मेदारी है।"

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22 JAN 2022 AT 21:38

इस तरह प्रीत मुझपे लुटाते रहो।
रूठती मैं रहूँ तुम मनाते रहो।
नींद नैनों से जब हो नदारद कभी,
तुम लगा उर से लोरी सुनाते रहो।।

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