काश कि मैं लिख पाती कोई ऐसी कविता जिसे पढ़ तुम कर पाते अनुभव मेरी पीड़ा का और लौट आते मेरे जीवन में पुनः वैसे ही जैसे पतझड़ में विदा हुई पत्तियां लौट आती है वसंत के आगमन भर से
सनातन धर्म पथ-दर्शक, बनाते काम हैं सबके निहित जो हैं चराचर में, नयनाभिराम हैं सबके मिटा विद्वेष उर का जो प्रथम रखते हैं मानवता मेरे उस राम के हैं सब, मेरे वो राम हैं सब के
तुम्हें यूं देख कर पहली दफा, मन में हुई हलचल कि कहना चाहते तुमसे धड़कते दिल के मेरे स्वर उचककर चूम लूं मैं भाग्य कर दूं प्रीत की दस्तक, तुम्हें पलकों तले रख लूं, तुम्हारी स्वीकृति हो गर।।