रंगीले दिन थे सावन के जो पीछे छूट गए
अधरों पे थी प्यासी बूंदे जो बादल लूट गए
पहनी गोरी कलाईयों में हरी हरी चूड़ियाँ
उफ़्फ़! बलमा के दिए हुए झुमके रूठ गए
बरसों से भीगी यादों की भीनी ख़ुशबू में
तुम हो,ना हो ये सारे वहम देखो फूट गए
कजरी गाई थी रातों में जब बिजली चमकी
तुम्हारे भी आलाप गले से झरझर छूट गए
कैसे करूँ अब जतन सखी रैन अंधेरी को
अखियाँ जो मूंदी पूनम ने तो सपने टूट गए-
तुम कल परसों रहोगे मेरे साथ
पर क्या ही फ़ायदा,आज नहीं हैं
मैं हूं बिपाशा, तुम हो अब्राहम
पर हमारा प्यार कोई राज़ नहीं हैं
बना भी दूं आलू-टमाटर की सब्ज़ी
खाने में नखरो का अंदाज नहीं हैं
इश्क़ तो कर लें दिल से हम दोनों
पर मोहल्ले में थोड़ा लिहाज़ नहीं हैं
तेरे बिना दिल को हो रही बेचैनी
उसका कोई हकीमी इलाज नहीं हैं
तू बात-बात पे रूठ जाता है मुझसे
यार तुझसा कोई भी हम़राज नहीं हैं-
प्यार के बदले क्या दोगे
जख्म गिला शिकवा दोगे
आज जी भर बतियाऐंगे
कल आखिर भुला दोगे
कसूरवार हम नही होंगे
फिर भी तुम सजा दोगे
वस्ल में लब मुस्कुराएंगे
हिज्र में तुम रूला दोगे
छोडोगे ख्व़ाब आँखों में
जेह़न से नाम मिटा दोगे
हम पुरानी यादों पे ठहरे
तुम देकर क्या नया दोगे-
सुरमई मधुरिम शाम ढलने को हैं
केसरिया धानी चुनर मलने को हैं
हिना के रंग ना रहेंगे हथेलियों पर
अंधियारे की ओर पग चलने को हैं
तेरी बातें,तेरे ख़याल हैं सदा रूबरू
तन्हाई का घना आलम छलने को हैं
नदी के किनारे कब मिल पाए यारा
इसी तड़पन में लहरें मचलने को हैं
आँगन में उतरेगा फलक से वो चाँद,
चांदनी आँखों में ख़्वाब पलने को हैं
तेरी यादों का सावन कजरी गा रहा
बदरिया से सावरी घटा बरसने को हैं
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तुम्हे याद हम दिन रैन करते हैं
मन ही मन में तुमसे बात करते हैं
यूँ खामोश रहकर ना निहारो तुम
आओ चाय संग मुलाकात करते हैं
दे देना मुझे कभी फूलों का तोहफा
होले से इश्क की शुरूआत करते हैं
जब नजरों से ही करेंगे बैठकर बातें
ख्वाब बुनने का काम साथ करते हैंं
उम्मीद का पत्ता बूटा सूखा जा रहा हैं
चलो आसमाँ से दोनो बरसात करते हैं
वैसे तो न गली न शहर हैं कोई नगर
सासों सें जीस्त को कायनात करते हैं-