Pournima   (पौर्णिमा)
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लेखणीला माझ्या शब्दांचे अलंकार ✍️
Joined 30 May 2021


लेखणीला माझ्या शब्दांचे अलंकार ✍️
Joined 30 May 2021
18 HOURS AGO


जब आओगे ना मिलने सावन की तरह
ठहर भी जाना लबों पर चुम्बन की तरह

घटा से करजवा बूंदों की पायल सजेगी
ओढूंगी घूंघट लाज का दुल्हन की तरह

सिमट जाएगी ये पूनम भीगी पलकों तले
तुम रखना उसे अपनी धड़कन की तरह

सब पुकारने लगे है अब मुझे गौरी कहके
नज़र आना तुम शिव की दर्शन की तरह

तेरी मीठी बातों में घुला पुष्प का मकरंद
तिरे ख्यालों से रूह महके चंदन की तरह

लब थरथराए जब तू छुए बन के बयार
दिल की धड़कने खनके कंगन की तरह

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18 JUN AT 18:51

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16 JUN AT 18:51

कभी मिलेंगे तो कोई अफ़साना तो होगा
जो भी निहारेगा मुझे वो दीवाना तो होगा

सुना है मोहब्बत में हारना हसीन होता हैं
इस जुस्तजू में सनम को जीताना तो होगा

कब तलक ऑनलाइन चैट में उलझे रहेंगे
किसी दिन हमें यारा रूबरू आना तो होगा

बहुत पढ़ ली शेरो शायरी युवरकोट पर
नग्मा छेड़कर पूनम को बहलाना तो होगा

रिश्ता निभाना है तो दिल बड़ा बनाना होगा
खूबी ओ खामियों को भी अपनाना तो होगा

रूठ़ने की आदत बडी संगदिल होती हैं ना
रूहानी कविताएं लिखकर मनाना तो होगा

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12 JUN AT 18:47

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9 JUN AT 18:47

मौसम की तरह अब बदलने लगे है लोग
शंतरज बिछा के चाल चलने लगे है लोग

नया दौर नया शोर दिखे मुनाफा चहुओर
जो चलन आया उसीमें ढलने लगे हैं लोग

मेहनत की सीढ़ियों से पाँव में आते छाले
देखकर इक झुनझुना बहलने लगे है लोग

ख्वाबों ख्यालों की बातों में बैचते हैं वजूद
इस कदर यहाँ फरेब से छलने लगे है लोग

तमाम तामील भी कहां दे पाई है रोजगार
तभी शहर से गाँव में टहलने लगे है लोग

कोई नही उठाता जिम्मेदारी का बोझ पुनम
किसीकी कामयाबी देख जलने लगे है लोग

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3 JUN AT 18:36

इंतजार यूं किए के धूप में काले पड़ गए
खामोश यूं रहे की मुँह में छाले पड़ गए

तेरे एक ख्याल से रात की नींद उड़ गई
फिर हुआ यूं के रात में उजाले पड गए

तेरे होने से ही रौनक थी उस इक गली में
तू जो रूखसत हुआ शहर में ताले पड गए

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31 MAY AT 18:42

सुनो, मिरी जुल्फों के साये में मिलेंगे तुम्हे सवेरे
जो आओगे तो कभी न छोड़ पाएंगे बाहोंं के घेरे

अपनी शरारती नजरों से कर देना सोलह सिंगार
रखना होले से अधर माथे पर और हो जाना मेरे

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30 MAY AT 18:38

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27 MAY AT 18:39

एक पल में सब भुला दूँ क्या
लिखा हुआ नाम मिटा दूँ क्या

अंतस में इक घुटन हो रही है
दर्द अल्फाजों को बता दूँ क्या

राहें उधर भटक रही शहर में
सुकून भरे गांव का पता दूँ क्या

कच्ची कली को जो छेडे भंवरे
बागबान से उन्हे पिटवा दूँ क्या

संगमरमर की तरह मिरे ख्याल
गजलों का मुशायरा बना दूँ क्या

कोई तरस रहा दीदार-ए-पूनम
चेहरे से बिखरी लटें हटा दूँ क्या

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20 MAY AT 18:36

आओ मैं तुम्हारी शर्ट पर बटन टाँक देती हूं
बदले में तुम मिरे लबों पे इक बोसा टाँक दो

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