Pournima   (पौर्णिमा)
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लेखणीला माझ्या शब्दांचे अलंकार ✍️
Joined 30 May 2021


लेखणीला माझ्या शब्दांचे अलंकार ✍️
Joined 30 May 2021
8 OCT AT 18:44

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5 OCT AT 10:21

के अब उदास नजरों में उदास ख्वाब मिलेंगे
कुछ जलते हुए मिलेंगे तो कुछ खाक मिलेंगे

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3 OCT AT 1:38

कुछ इस तरह से आज़माया उसने हमें,
ना अपना बनाया ना बेगाना होने दिया हमें

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30 SEP AT 19:04

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24 SEP AT 18:53

जिसको जैसा रहना है वैसा रहने दो
जिसको जैसा कहना है वैसा कहने दो

लोग उड़ते होंगे हवाओं में बन परिन्दा
ज़मीं पर मुझे मेरे हिसाब से चलने दो

ठहरे हुए पानी को भला कौन पूछता है
मैं नदी हूँ प्यास लेकर मुझे बहने दो

चेहरे की झुर्रियाँ तोड़ देती हैं आईने
ढलते जमाल-ओ-हुस्न से मुझे डरने दो

आबाद है मेरा जहाँ अपनी मुफ़लिसी में
जो गिले-शिकवे हैं वो मुझमें ही रहने दो

किसीकी रौशनी से क्यों चमकेगी पूनम
मेरे चिराग़ को मेरे अंधियारे में जलने दो

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20 SEP AT 18:40


जो कभी तेरा हुआ ही नहीं उस पे तू हक जताने चली थी
पूनम तू उसके लिए पूरा शहर नहीं इक मामूली गली थी

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19 SEP AT 19:08

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16 SEP AT 18:38

एक शोर बरसात का बरसता निरंतर
एक मचा रहा घिरकर मन के भीतर

क्यों राह देखे हम बरसती बूँदों की
लग रहा था ना आएंगे घर लौटकर

लंबे अरसे के बाद मुलाकात हुई थी
वो बरसात में बेजुबाँ थे हमसे मिलकर

बरसती बूंदों का आसमान घना सा
हौले से घुल रहा अश्कों में पिघलकर

अब ना कोई चाहत रही ना उल्फ़त मेरी
झूमती हवाएँ हिलोरे ले रही हैं दरबदर

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14 SEP AT 18:45

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12 SEP AT 19:37

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