न बैसा महबूब बचा, न बैसा संग बचा ।
न बैसी होली बची, न बैसा रंग बचा ।।
बहुत ही अपंग निकला, प्रेम का ये लाल रंग,
लगते ही दिल पर, न बैसा मलंग बचा ।।-
बेरंग नज़र आती है मुझे ये दुनिया सारी
मैं चश्मा पहन कर ही घर से निकल ता हूँ-
बे'रंग सी इस दुनियां में बे'ढंग से हैं लोग यहाँ
एक पल तुम भी सोचो न क्या देगें तुम को लोग यहाँ
-©सचिन यादव-
कि हर रोज रंगीन दिल की तलाश है मुझे,
पर खुद की नीयत को बेरंग बनाया है ।
क्या कहा, इंसान समझते हो मुझे,
पर मैंने तो खुद को सिर्फ आदमी बनाया है।-
फिर दिलों से दिल जुड़ रहे हैं।
रंग हवाओं में फिर उड़ रहे हैं।।
यूँ रंग फैला है प्यार का हर तरफ।
दुश्मन भी मिलने को गले मुड़ रहे हैं।-
तुमने मोहब्बत जो स्वीकार की मेरी
सपनों में नया रंग भर गया
कब से तमन्ना थी तुम्हारे दिल में बसने की
सपनों को नया पंख मिल गया-
एक अरसा बीत गया
फिर खामियां ढूंढने आये तुम
साथ लेकर अनेकों रंग नही आये तुम
जो पहले तुम लाल हरे रंग की चर्चे
किया करते थे पर अब बेवज़ह ही
हर बात को तोलने में लगे हो
जब देखो जहां देखो सिर्फ
सफ़ेद झूठ व काला सच बयाँ करवाते
हो हमसे तुम, इसकी भी ख़बर है तुम्हे
सिमट लेते हो नए नए आयामों को
मेरे हर एक बलबूते पर खड़े होकर
भी ना जाने क्यों तुम मेरी बुराइयों को
सिमटे हुए मुझे बेरंग किये जा रहे हो-