कुछ पल बरसा और बर्बाद कर गया
बे-मौसम बारिशें तबाही ख़ूब करती हैं-
ए मुहब्बत👂
मुझे चाहिए💞
मुआवजा बेमौसम☔बारिश का ..
तेरे बारिशो से हुआ नुकसान,
मेरी मुहब्बत का !
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कैसे रोक लिया जाए बारिशों को आने से,
जो बेमौसम हम पर बरस जाती हैं।
आंँसुओं की घटाएंँ ग़मों का सैलाब बन,
तन्हाइयों को तेरी यादों से भीगा जाती हैं।
ना कुछ कहती है हमसे ना ही कुछ सुनती है,
फ़िर भी ख़ामोशी से तेरा ज़िक्र कर जाती हैं।
पतझड़ में बहार बहारों में पतझड़ ले आती है,
तेरी यादें दर्द का हसीन पैग़ाम दे जाती हैं।।-
मौसम की बारिश भी बेमौसम लगी हमें,
हम घर पर ठहर गये;
खुद की ही क़ैद में अपना वजूद तलाशते,
शायद ज़माने गुज़र गये!-
हर वक्त कहीं से आ जाती है।
जैसे कोई आवारा बादल
बेमौसम छाकर बरस जाती है।-
बिजली कड़कती हवायें चुभने लगतीं हैं
जुड़ गयीं जो धड़कने घुटने लगतीं हैं
सब समझते है मौसम बदल गया यारो
सच में किसी की दुनियां उजड़ने लगती है !
जब ये बेमौसम बरसात आती है
काली घटाएं आसमान में छाती है !
शादी के नाम पर तोड़ दिए दिल जो
शायद उनकी चाहत बरस जाती है !
इश्क़ वालों से पूछो इसकी क़ीमत
महीनों तक उनको नींद नही आती है
कभी महफ़िल जो मुशायरों की हुआ करती थी
माशूक़ की शादी होते ही दर्द भरे गीत गुनगुनाती है !-
"आज बेमौसम बरसात हो रही है
अधर्म की नई शुरूआत हो रही है
सत्ताधारियों की बिसात बिछ रही है
जनसामान्य की जिंदगी छीन रही है"-
बेमौसम कि बारिश, मुझको तो बहुत ही भाती हैं,
सौंधी-सौंधी खुशबू आती, बिन सावन महकाती हैं...
बूँदें यें जब गिरती हैं...कुछ राहत सी, कुछ चाहत कि, साँसों को महकाती हैं...
बारिश कि इन बूँदों से, सिरहन सी जो आती हैं
इतनी ठंडक, इतनी आग...
एक साथ ये कैसे लाती हैं ?
लगता हैं तुझसे मिल कर आती हैं...
बेमौसम कि बारिश,
मुझको तो बहुत ही भाती हैं
रिमझिम-रिमझिम बारिश में...
तेरी यादें वाज़िब हैं...
(पूर्ण रचना अनुशीर्षक में....)
~दीपा गेरा
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