Universe inside...
And vast outside...
I belong nowhere!
~Deepa Gera
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इबादत ज़रा सी,
आदत ज़रा सी..
चाहत ज़रा सी...!!
राहत ज़रा सी...!! 🙏😍😊
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मोबाइल में सबकुछ है,
पर नहीं है आज़ादी।
न हवा, न रोशनी, न बरसात...
ये सब छोड़ जाते हैं साथ।
Instagram, Snapchat, Facebook-
तरक्क़ी में इनका नही कोई हाथ।
मशहूर पहले भी हो जाते थे लोग,
चाँद पर भी पहुँच जाते थे लोग
मोबाइल पे छुपा नहीं है
कोई असली ज्ञान-विज्ञान।
तरक्क़ी तो हर हाल में
मेहनत का ही है कमाल।
~ दीपा गेरा
(शेष अनुशीर्षक में )
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देखते रहोगे गर मोबाइल
नही देख पाओगे तितलियाँ
गुजर जाएँगे दिन और रात
न मिलोगे सूरज से,
न चाँद से होगी बात
~दीपा गेरा
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न मैं मीरा,
न मैं राधा
न मैं मित्र सुदामा-सा
न मैं सखा श्रीदामा-सा
न मैं नाचू, ना मैं गाऊ
न खेलूँ न गईया चराऊ
अर्जुन-सा न मैं प्रिय
न दाऊ सा प्यारा हूँ
नासमझ मैं..कैसे तुझे रिझाऊ?
~कालजयीदीपि
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मीरा का ठाकुर, द्रौपदी का रखवाला,
श्रीजी का अर्धांग और ब्रज का सार।
यशोदा का लल्ला, गोपियों का प्यारा,
हर एक का सखा है वो मतवाला-मुरलीवाला।।
~कालजयी दीपि
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अनंत है स्वरूप जिसका,
अखंड है विश्वास जिस पर।
कान्हा कहो या नन्दलाला,
हर एक का सखा है वो मतवाला- मुरलीवाला।।
~कालजयीदीपि
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If you keep staring at your mobile
you’ll miss blooming flowers and butterflies.🦋🦋🌸
~Deepa Gera
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Born on the dawn of freedom, 15 August.
Departed forever on 26 January.
A perfect circle of liberation.
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देर तलक किया इंतज़ार
पूर्णिमा के चाँद का...
वो भी अधूरा था हमारे प्यार-सा
~दीपा गेरा
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जैसे-
हर रोज़ थम जाता है दिन
शाम की चाय के लिए...
क्या तुम नहीं ठहर सकते —
बस, शाम की
एक कप चाय के लिए...?
~ कालजयीदीपि
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