भावनाओं का समंदर लिये मुसाफ़िर दर-दर भटकता है,
अपनों का बेगानों-सा पेश आना उसे बेहद खटकता है ।-
बेगानापन भी उसने क्या खूब निभाया
महफिल थी उसकी मगर मुद्दा मुझे बनाया!-
ना ज़िद है कोई ना कोई पागलपन
कि खो गया है मेरा वो "आवारापन"......
ना आरजू कोई
ना जुस्तजू कोई
ना मासूमियत भरा वो बचपन....
हाँ खो गया है मेरा वो आवारापन.....
ना अपना कोई
ना पराया कोई
है अगर कुछ तो वो है बस बेगानापन.....
कि अब बाकी नही है मेरा वो आवारापन......
हाँ खो गया है मेरा वो आवारापन......
-
देखो वक़्त ने ख़ूब चक्कर चलाया।
परायों के जमघट मे अपनों को पाया।।
122 122 122 122
-
बेगानेपन के लिबास में लिपटा हुआ वो अपनापन
दिल तो चहता है ऐतबार कर लू मैं ।।
अभी तो और भी इम्तिहां बाकी है वक़्त के "परदेसी"
कुछ घड़ी और जरा इन्तजार कर लू मैं ।।-
अब तो खुद के लिए भी हम बेगाने हुए जाते हैं,
वो जो तलबगार थे मेरे मेरी महफ़िल से उठ गए।-
गुमनाम हकीकत हूं...
गुमनाम हूं
तन्हा हूं
आजकल कोई भी तो
पूछता नहीं है मुझे
अरे! वक्त आने पर तो
साया भी साथ
छोड़ देता है मेरा
बनावट की तेरी हर खुशी से
हां! मैं दूर होता हूं
मगर, तुझ पर गुजरे
...हर दर्दों गम से
मैं जार जार रोता हूं
मैं खुश हूं के मैं
भीड़ का हिस्सा नहीं
तेरी बर्बादियों से जुड़ी
कोई किस्सा नहीं हूं
कोई कहता है,
तु अकेला लड़ नहीं सकता जमाने से
अरे! उन्हें कहां पता
इस दुनिया की भीड़ से अलग
'मैं' खुद में एक 'जमाना' रखता हूं!!
-
मेरी हथेलियों की
लकीरें
वो अक्सर
चूम लिया करता है
होठों से अपने |
बाद इसके भी ,
मगर वो .............
कि बेहद बेगाना-रवी
सा लगता है||-
प्यार के बदले जो मिले, किसी को अपनों से नफरत
दर्द बहुत होता है, बुझ सी जाती है दिल की हसरत
-