जब आपके शब्द मुझे चुप करा देते हैं तो मुझे बेहद क्रोध आता है खुद पर|लेकिन मैं खुश भी तभी होती हूँ कि जब आपकी कलम के साथ दो -दो हाथ नहीं कर पाती|क्योंकि यह मुझे खुद को माँजने के लिए और ज़्यादा मेहनत करने की तरफ़ मोङता है|आपने सच ही लिखा है उस्ताद आपके पास अनगिनत फरिश्ते हैं मगर अपने खाते में सिरफ़ एक ही है|इसलिए मैं गाहे-बगाहे उसके इलाके का चक्कर काट ही आती हूँ|चार रोज़ पहले प्यास से तङपती तमाम तितलियाँ जब आसमान में चाँद की तलाश में छतों की सीढियाँ चढ़-उतर रही थीं, मैं आपके इलाके में आपके क्योट झाँकने आई थी मगर अबकी आप तर-त्योहार पर कुछ भी न लिखे|हां लेकिन ये आख़री वाला बेहतरीन रहा|दुनिया जिसको गुलाबी ठंड कहती है न उस्ताद वो मेरे दरवाजे पर दस्तक देने लगी है|शाल ओढ़ने लगी हूँ अब सहर में और सूरज से बातें करने लगी हूँ|आपको पता है मुझे लगता था कि जुगनू जमाने में रहे ही नहीं मगर वो हैं अब भी जगमगाते हैं अाधी रातों को|अभी परसों की रात मेरे बिस्तर पर आया था एक जुगनू|मुझे याद आ गया अपनी नानी का गाँव|ओसारे में कंपकंपाते बदन पर अनगिनत रौशनी के बल्ब जल उठते थे अक्टूबर आते ही|कितने सारे जुगनू थे हमारे नानी के गाँव में|मगर अब सब रस्ता भटक गये हैं|लेकिन वो लौटेंगे ज़रूर अपने घर,मुझे यकीन है|आप भी आएंगे जरूर एक रोज़ क्योंकि जुगनू वादा नहीं तोङते✍🏻है न उस्ताद|🙋🏻
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इंतज़ार,
रहता मगर फिर भी मुझे,,
कुछ बोलेगा,
तू जब भी|
ख़मोशियाँ
चीख उठेंगीं
मर जायेंगे प्यासे
बादल आयेगा नहीं,आसमान पर तब भी||-
एक माह के अंतराल पर हमारी यात्रा की शुरूआत हुई थी|तब नहीं जानती थी कि उस बरसाती रात में जिस मंच पर मैं अपने कुछ टूटे-फूटे शब्द लेकर आई थी (चूँकि शब्द मेरे थे मगर तकनीकी जानकारी के अभाव में पोस्ट कजिन से करवाई थी)वहीं कुछ दिनों में मेरा आप जैसे बेहतरीन इंसान से आमना-सामना होगा|हम मिले और तकरीबन साढ़े चार बरस में हमने एक-दूसरे के साथ एक खूबसूरत रिश्ता साझा किया|जब-जब मैं भटकने लगती आप मुझे जोर की डाँट लगा देते|ठीक उसी तरह जैसे एक शिक्षक अपने छात्रों को गलती करने पर डाँटता-डपटता है|मुझे नहीं पता कि कभी असल दुनिया में आपसे भेंट होगी कि नहीं मगर जहाँ भी रहूंगी ये बात हमेशा याद रखूंगी कि आप ही थे वो इंसान जिसके वजह से मैंने अपनी ज़िंदगी फिर से जीना शुरू किया|पढ़ाई-लिखाई शुरू की|फिर से सपने देखने लगी आसमानी आँखें|आज शिक्षक- दिवस है और मैं सोशल नगरी के अपने इकलौते शिक्षक को देर से मुबारकबाद दे पा रही|क्योंकि सफर में थी|कल की रात मेरा एक रिज़ल्ट आया है सर|अगर सब ठीक रहा तो मैं जल्द आपको हीरा हलवाई की गुलाबजामुन गटकवाऊंगी|🤷😀😀🙆🏻🙋🏻हैप्पी टीचर्स डे सर 🙏🙏
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फ़कत,,घाट बनारस के ही नहीं..
उसको भाने लगी हैं,बनारसी साङियाँ भी|
एक लड़की के फेर में,इश्क़ बनारस से,
कर बैठा है वो लखनऊ का लङका||-
तमाम गलियों की खाक छानी गठबंधन की आस में,
तुम क्या मिले कि मुँहमाँगा मुझे वर मिल गया...-
मँडरा रही हैं ये जो मधुमक्खियाँ,
तुझको मकरंद जान कर|
नाहक नहीं मारी जायेंगी,कसूरवार हैं...
ये मिरे रकबे में आकर||-
बोल देना,
इससे पहले कि,,
ग़लतफ़हमियाँ गरदनें रेत दें,
गहरे रिश्तों की.....!!-
तरइयाँ आसमानों में, अब कौन ताकता होगा?
लङकुच्चे तो गाँव के सब पढ़ने शहर चले गये||-
तमाम जलते दिनों के इंतज़ार के बाद लौटी इस बरसात में मेरे उस्ताद जहां चाय से यारी निभा रहे हैं वहीं मैं मोबाइल की खिङकियों से झाँककर उनके इलाके का मुआयना कर रही|लगातार पाठ्यक्रमों पे सिर पटकते हुए जब दो तारीख़ को पहाङों से उतरी तो कुछ तलाश करते हुए इस दुनिया का चक्कर भी लगा लिया|सोचा कि शायद कुछ लिखा हो आपने मगर आप एकदम से चुप थे|फिर फादर्स डे पर भी मैं इधर आई मगर मुझे लग ही रहा था कि आप आज भी चुप ही मिलेंगे तो हुआ भी वही|क्योंकि यादें इंसान को चोटिल करती हैं और ये दिन यकीनन आपको परेशान किया होगा|मगर आप एक मज़बूत इंसान हो,ये भी मालूम है मुझे|इतने सालों से आपका लिखा पढ़ते-पढ़ते और आपके साथ कहीं दूर बैठकर भी काग़ज काला करते-करते इतनी समझ तो हो ही गई है कि उस्ताद कभी हारते नहीं|चीङ के पेङों की तरह खङा वो एक शख़्स जो मुझे कभी अक्खङ लगता था कभी फक़ीर|मैंने देखा कि अनगिनत लोगों की तरह वो भीङ का हिस्सा नहीं बना|अपनी धुन में मस्त-मगन वो फ़कीर अपनी अदा में लिखता रहा|उसे नहीं फ़र्क पङता कि कौन लिख रहा,तो किसने लिखना छोङ दिया!हर नये लेखक को सराहा|सभी की हौसला-अफ़जाई की|ऐसे तमाम लोग जो शुरू में हिचकिचाते थे सोशल मंचों पर लिखने से,आज खुलकर लिख रहे|हम कलम घिस रहे,ये बङी बात नहीं,हम चार और लोगों को प्रोत्साहन दे रहे,आठ नयी लेखनी तैयार कर रहे,महानता इसमें है|निश्चित तौर पर आप ये कर रहे सर|☔☔☔☔🙏✍🏻
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