आयत आसमां   (आसमान)
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Joined 17 June 2021


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तरइयाँ आसमानों में, अब कौन ताकता होगा?
लङकुच्चे तो गाँव के सब पढ़ने शहर चले गये||

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तमाम जलते दिनों के इंतज़ार के बाद लौटी इस बरसात में मेरे उस्ताद जहां चाय से यारी निभा रहे हैं वहीं मैं मोबाइल की खिङकियों से झाँककर उनके इलाके का मुआयना कर रही|लगातार पाठ्यक्रमों पे सिर पटकते हुए जब दो तारीख़ को पहाङों से उतरी तो कुछ तलाश करते हुए इस दुनिया का चक्कर भी लगा लिया|सोचा कि शायद कुछ लिखा हो आपने मगर आप एकदम से चुप थे|फिर फादर्स डे पर भी मैं इधर आई मगर मुझे लग ही रहा था कि आप आज भी चुप ही मिलेंगे तो हुआ भी वही|क्योंकि यादें इंसान को चोटिल करती हैं और ये दिन यकीनन आपको परेशान किया होगा|मगर आप एक मज़बूत इंसान हो,ये भी मालूम है मुझे|इतने सालों से आपका लिखा पढ़ते-पढ़ते और आपके साथ कहीं दूर बैठकर भी काग़ज काला करते-करते इतनी समझ तो हो ही गई है कि उस्ताद कभी हारते नहीं|चीङ के पेङों की तरह खङा वो एक शख़्स जो मुझे कभी अक्खङ लगता था कभी फक़ीर|मैंने देखा कि अनगिनत लोगों की तरह वो भीङ का हिस्सा नहीं बना|अपनी धुन में मस्त-मगन वो फ़कीर अपनी अदा में लिखता रहा|उसे नहीं फ़र्क पङता कि कौन लिख रहा,तो किसने लिखना छोङ दिया!हर नये लेखक को सराहा|सभी की हौसला-अफ़जाई की|ऐसे तमाम लोग जो शुरू में हिचकिचाते थे सोशल मंचों पर लिखने से,आज खुलकर लिख रहे|हम कलम घिस रहे,ये बङी बात नहीं,हम चार और लोगों को प्रोत्साहन दे रहे,आठ नयी लेखनी तैयार कर रहे,महानता इसमें है|निश्चित तौर पर आप ये कर रहे सर|☔☔☔☔🙏✍🏻

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किरदार निखालिस ही सही
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मगर,,,
ज़ुर्म संगीन था💔

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तकिये के फूलों में
तेरे नाम का हर्फ़ कढ़ा था
और फिर
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हम जिले में
सरनाम हो गये..

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अलामत लिए आती हैं ख़्वाब में तितलियाँ,,
तुमसे मिलने की वो नादाँ चाहत अब भी बाकी है..

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एक नई जनवरी,एक नया बरस और एक नये जीवन की सुनहरी यात्रा की बहोत- बहोत मुबारकबाद उस्ताद|आने वाला वक़्त अपने भीतर कितना कुछ छिपाये हुए रहता है,कोई नहीं जानता|हम सब तो बेहतर की ही उम्मीद करते हैं|हमारे हाथों में तो सिरफ़ कोशिश होती है हर बङी से बङी परेशानी से लङने की,जीतने की और आगे बढ़ते जाने की|हम और आप इन्हीं प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं|एक वक्त था जब आपसे मुलाक़ात हुई थी इस मंच पर|एकदम अज़नबी थे आप उस वक्त मेरे लिए|धीरे-धीरे परिचय बढ़ा तो मित्र हुए फिर किसी रोज़ आपको उस्ताद कह बैठी एक इलाहाबादी लङकी|अभी शायद आप वहाँ हो जहां आपके खुशी और ग़म से मुझे फर्क़ पङता है|गुज़रा साल आपके लिए तकलीफदेह रहा मग़र मुझे यकीन है कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा सर और आप पहले की तरह खुशमिज़ाज़ हो उठेंगे|इस साल मेरे शहर में महाकुँभ का आयोजन हो रहा|मुझे उम्मीद है आप भी आयेंगे और गंगा में डुबकी लगायेंगे ही|तो जब आयें तो ज़रा इस पगलेट की भी ख़बर ले लीजिएगा|दुनियाभर के भूले - भटके लोग मिल जाते हैं महाकुँभ में आकर फिर मैं तो इतने सालों से अपने उस्ताद का पीछा कर रही हूँ|अब तो उनको भी मिलना ही पङेगा|जहाँ भी हों आप इस वक्त,मेरी दुआ है खूब खुश हों और स्वस्थ हों|ये साल आपके लिए ढेर सारी कामयाबी लेकर आए और ये जन्मदिन आपके लिए यादगार हो उठे|ठंड से अंगुलियाँ जमी जा रही फिर भी लिख रही तो पढ़ लीजिएगा केक और काफी गटकते हुए

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18 NOV 2024 AT 23:06

जो बेशर्त हो,
बेहिसाब हो,

उसे ही तो इश्क़ कहते हैं||

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26 SEP 2024 AT 3:00

एक पिता,जो हर बच्चे के लिए उसकी ज़िंदगी का सबसे बङा नक्शकार होता है,जो रंग भरता है उसकी दुनिया की हर तस्वीर में,उसका यूँ अचानक से दूर चले जाना हमारी जिंदगी को बेवक्त ही वीरान कर जाता है|सर्वप्रथम मैं अापसे माफ़ी चाहूँगी सर क्योंकि जब आप ज़िंदगी के सबसे कठिन दौर से गुज़र रहे थे और आपको सहारे की ज़रूरत थी तब मैं नहीं थी आपके आस-पास,शायद इसलिए कि मुझे ख़बर न थी|हमेशा यही सोचा करती थी,जो रस्ता आपने दिखाया, उस सफर की मंजिल मिलते ही आपके शहर आऊंगी|बेशक़ कुछ घंटों या मिनटों को ही मगर आऊंगी|अपने शहर का नाम कभी आपने बताया नहीं मगर मैं फिर भी खुली आँखों ख़्वाब देखती रही,मैं मिलना चाहती थी उस परिवार से जहाँ आपकी पैदाइश हुई थी,उस पिता से जिसने अपने बेटे को एक बेहतरीन परवरिश दी थी और जिसके कारण मैंने आपको हमेशा अपना उस्ताद माना था|इस मंच से मैंने ख़ुद को एकदम से काट लिया मगर फिर भी यदि मैं यहां आती रही गाहे-बगाहे तो अपने उस्ताद के लिखे को ही घोंटने| अफ़सोस कि अब मैं उस आदमी से कभी नहीं मिल सकूंगी|जानती हूँ कुछ तकलीफ़ों को दूर करना किसी के वश में नहीं होता|मगर मैं दुआ करूंगी कि आप ज़िंदगी के इस बेहद बुरे दौर में भी कमज़ोर नहीं पड़ेंगे|अपनी माँ के लिए खङे होंगे|उनका हौसला बनेंगे|आप हीरो हैं हम-सब के सर|हमारी दुनिया को आपने हमेशा कहीं बहोत-दूर से अपनी कलम से रौशन किया है|हमारे लिए ही मज़बूत बनिए🙏

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25 MAR 2024 AT 1:22

उनकी ख़ामोशी भी उनकी ही तरह बेहद खूबसूरत है|वैसे वो अपनी चुप्पी में भी शोर का सरंज़ाम बाकायदा रखते हैं|आप उनको पढ़ते हुए महसूस कर सकते हैं कि एक शख़्स जो महीनों से कुछ लिख नहीं रहा,वो कितनी बेबाकी से अपनी अनुपस्थिति में भी उपस्थिति दर्ज़ कराता चलता है कलम के इस सहरा में,वो भी बोले बग़ैर|हम अपने पसंदीदा रंगों में समानता साझा करते हैं शायद इसलिए मेरे उस्ताद अपने ज़िस्म पर रंगीन दुनिया के सारे रंगों के बरक्स मेरी पसंद का सफेद रंग ओढ़ते हैं |गाहे-बगाहे अदा बदलती है मगर उनका असल लिबास तो सफेद ही हुआ करता है|यकीनन उनको पढ़ने वाले,उनके अशआरों से मुहब्बत करने वाले लोग मेरी ही तरह पागल होंगे उनको रंग लगाने के वास्ते भी|रंगों के पर्व की बेहद-बेहद मुबारकबाद उस्ताद|कई रोज़ हुए आपकी कलम की रियासत में देर रात एक लङकी दाख़िल होती है चुपचाप,आपको पढ़ती है,बार-बार पढ़ती है,फिर चुपचाप ही बग़ैर कुछ कहे-सुने वापिस लौट जाती है अपनी पढ़ने की मेज़ पर|आज उस लङकी से चुप नहीं रहा गया तो अपने पसंदीदा लेखक से ख़त-ओ-ख़िताबत करने बैठ गई| दीवार पर एक नाम चिपका रखा है लिखकर-"आसमान के उस्ताद"|एक अद्भुत रचना-संसार के सृजन के वास्ते कि जहां एक जादूगर अपनी गिनती के शब्दों से महावृत्ताँत रचता चल रहा है,आपको बहोत-बहोत शुभकामनाएँ|यूँ ही लिखते रहिए और हम सब को पढ़ने का मौका देते रहिए|नमस्ते सर🙏🙏

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15 FEB 2024 AT 2:32

माँ की शॉल में गुजारे जाङे के दिन उसे बखूबी याद हैं,वो लङका आज भी पारले जी बिस्कुट से मोहब्बत करता है|महाकाल का वो दीवाना शहर भर में बदनाम है,कारण चादर की सिलवटों में माशूक की तस्वीर जो मिली है,उसे फिक्र है दुनिया जहान की,लोगों ने उसके सहर का सूरज जो उससे छीन लिया है|हर टूटे दिल की आवाज़ उसके दिल तक जाती है शायद तभी हम जैसे लोग जो एक दफ़ा उसके इलाके से दिल लगा बैठे तो फिर कभी लौट ही नहीं पाए वापिस घर|इतनी संजीदगी से कोई कैसे इतने गंभीर मसलों पर लिख जाता है,वह भी बग़ैर किसी लाग लपेट के!आपके समस्त लेखन का एक्सरे करने के बाद जो एक तरह का सुकून और ताज़गी नसीब होती है वो अपने आप में बेहद ही खूबसूरत और दिशा देने वाली भी है|हर बार आप अपनी कूँची को नये रंग में डुबो कर लाते हैं और हर बार एक नयी तस्वीर गढ़ते हैं|हिंदी साहित्य की विद्यार्थी हूँ ,इतना तो समझ आता ही है कि कौन किस दर्जे का लेखक है|आप लाख ख़ुद को लेखक होने से नकारते रहें मगर आप इस मंच के ही नहीं,बल्कि ज़िंदगी के भी बेहतरीन कलमकार हैं|आपके शेरों पर जल्दी कोई टिप्पणी नहीं करती हूँ क्योंकि अपनी पसंदीदा रचनाओं को पढ़ते हुए बीच में टीका- टिप्पणी मुझसे नहीं होता|इसलिए सोचा कि क्यों न एक पत्र ही लिखूँ|बसंती मौसम में बरसात..हां थोङा अजीब है मगर मेरे शहर का यही मिज़ाज़ है आजकल|उम्मीद करती हूँ आप आगे भी अपनी कलम का जादू बरकरार रखेंगे सर🙏

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