Sanjay Saroj   (✍️संजय सरोज "राज़")
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Joined 5 January 2020


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21 JAN 2023 AT 1:00


1222 1222 1222 1222
भले ही दूर जाती हैं समंदर से उठी लहरें।
मगर अपने हदों को छू के वापस आ ही जाती हैं।।

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8 JAN 2023 AT 0:08

आज बे - रंग है ज़िन्दगी ग़म न कर।
कल तो मिल जाएगी हर ख़ुशी ग़म न कर।।

साथ तेरे रहूँगा मैं सातों जनम।
ऐसी कर जाऊंगा आशिक़ी ग़म न कर।।

देंगे दस्तक़ उजाले तिरी राह में।
ख़त्म हो जाएगी तीरगी ग़म न कर।।

इश्क़ को तौल मत इन निग़ाहों से तू।
मैंने दिल से है की दिल- लगी ग़म न कर।।

यह अँधेरा तो क़ायम रहेगा नही।
जगमगाएगी कल रोशनी ग़म न कर।।

आज तेरा है दिन तो अकड़ता है क्यों।
आएगा दिन मेरा भी कभी ग़म न कर।।

तू भी मिल जाएगी अपने सागर से कल।
बहती जा बढ़ती जा ए नदी ग़म न कर।।

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5 JAN 2023 AT 23:13

छोड़ मुझको तू गया तो फ़ासला हो जाएगा।
फ़िर ग़मों के साथ मेरा राब्ता हो जाएगा।।

मत पिया कर तू ज़ियादा मय-कदा आने के बाद।
एक दिन अन्दर से तू भी खोखला हो जाएगा।।

हम भी दरिया है हमें अपना हुनर मालूम है।
"जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा"।।

तू अकेले ही बढ़ा अपने क़दम मंज़िल की ओर।
देखना फ़िर पीठ पीछे काफ़िला हो जाएगा।।

छटपटाते हैं बिलखते ठंड में जो कांपते।
बन सहारा बे-सहारों का भला हो जाएगा।।

भाग कर जाता कहाँ है रुक जा थोड़ी देर और।
बस ज़रा सी देर में सब फ़ैसला हो जाएगा।।

इक दफ़ा नज़रें उठा के देख ले तू 'राज़' को।
बेवफ़ाई का नही तो मामला हो जाएगा।।

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4 JAN 2023 AT 22:28

तुझको मेरी अब जरूरत है कहाँ।
पहले जैसी वो मुहब्बत है कहाँ।।

लड़कियों में बाँकपन हुस्ने अदा।
अबके लड़को में शराफ़त है कहाँ।।

तेरी करनी सब मुझे मालूम है।
अब दिखावे की ज़रूरत है कहाँ।।

मार डालेगी जुदाई अब मुझे।
तेरे बिन जीने की आदत है कहाँ।।

चाहते तो बोल देते सच था जो।
पर भला तुम में वो हिम्मत है कहाँ।।

हो गये बदनाम ग़र महफ़िल में "राज़"।
फिर मिली इज्ज़त तो इज्ज़त है कहाँ।।

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3 JAN 2023 AT 22:30

मतला और एक शेर!!


2122 2122 212
तुझको मेरी अब जरूरत है कहाँ।
पहले जैसी वो मुहब्बत है कहाँ।।

लड़कियों में बाँकपन हुस्ने अदा।
अबके लड़को में शराफ़त है कहाँ।।

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21 OCT 2022 AT 3:37

कुछ मिले शख़्स जो मुस्कुराके मिले।
बाक़ी खंज़र बग़ल में दबा के मिले।।
दिल्लगी कर गये कुछ मिरे साथ में।
लोग कुछ थे जो दिल से लगा के मिले।।

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7 AUG 2022 AT 0:40

2122 2122 212
थक चुका हूँ मैं गमों के बोझ से।
ज़िंदगी थोड़ा मुझे आराम दे।।

रौशनाई ख़त्म होने जा रही।
लेखनी को अब ज़रा विश्राम दे।।

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23 MAY 2022 AT 23:03

बनती ग़ज़ल के कुछ अश'आर

122 122 122 122
गमों ने सताया दुःखों ने घटाया।
क़दम मैंने पीछे नही है हटाया।।

उठा हाथ जब भी मदद के लिये तो।
मिरा हाथ आगे हमेशा ही आया।।

न टूटे कोई दिल मेरी हरकतों से।
मेरे संस्कारों ने है यह सिखाया।।

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14 MAY 2022 AT 1:01

212 212 212 212
माँ की तू शान है माँ का अभिमान है।
तू ज़िगर है उसी का तू ही जान है।।

भूल कैसे गया माँ की उस कोख़ को।
जिससे तुझको मिली आज पहचान है।।

जिसकी ममता के किस्से अमर हो गये।
उस मुहब्बत से औलाद अनजान है।।

माँ के उपकार का कोई सानी नही।
आज बेटा करे तो वो एहसान है।।

माँ का दर्ज़ा ख़ुदा से भी ऊपर रहा।
बन के आयी धरा पे जो इंसान है।।

माँ के आँचल तले वो भी सोये कभी।
चाहता "राज़" ऐसा भी भगवान है।।

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10 MAY 2022 AT 8:52

212 212 212 212
माँ की तू शान है माँ का अभिमान है।
तू ज़िगर है उसी का तू ही जान है।।

भूल कैसे गया माँ की उस कोख़ को।
जिससे तुझको मिली आज पहचान है।।

जिसकी ममता के किस्से अमर हो गये।
उस मुहब्बत से औलाद अंजान है।।

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