बिखर जाती हूं, या बिखेर देती हूं,
ज़िन्दगी को संभालना नहीं आया अभी।-
मैं 'विजेता' हूँ.....
गिरती हूँ संभलती हूँ,
टूटती हूँ बिखरती भी हूँ,
बस, हारती नहीं।✌️😊💕-
जानेजाँ अगले जन्म...तेरी जुल्फ बनकर...
हवा के झोके से...तेरी गालो पे बिखर जाऊँगा...
जुल्फों में उंगलिया फिराने की...बस आदत छोड़ दे...
अच्छा नहीं लगूँगा...गर सँवर जाऊँगा😘-
रिहाई की किसे गुज़ारिश करुँ ,
जब कैद हूँ अनकहीं बातों में .......-
यह इम्तिहान जिंदगी के हैं, यहां तैयारी करके इम्तिहान आसान नहीं बनाया जाता , बल्कि इम्तिहान से जिंदगी आसान बनाई जाती है...,
कुछ प्रश्न सुख के कुछ प्रश्न दुख के होते हैं...,
लेकिन यह इम्तिहान हैं साहब, जो भी प्रश्न होते हैं अनदेखे से होते हैं
कोई प्रश्न को बखूबी हल करके, सीख., निखर जाता है.., कोई प्रश्न देख घबरा ,, बिखर जाता है ....-
अगर शक है तुमको हमारे प्यार पे
अगर ऐतबार नही तुमको हमारी
बातो पे तो आजमा के देख लो....
तुम मेरी वो अमानत हो जिसे मैंने
खुद से भी ज्यादा संभाला है
जैसे सिप में मोती.....
अगर फिर भी न हो ऐतबार
हो तुमको हमारे प्यार पे तो
बिखर जाएंगे हम जैसे टूटे
हुए फूल की पंखुड़िया....
चाहे आजमा के देख लो
-
कि कभी खामोशी तो कभी शोर सुनाई देता है मुझे इन हवाओं में,
या मैं बिखरी हूँ, या किसी और का भी दिल टूटा है इन हवाओं में।-
तुम सीख जाओ बोलना भी, मन की हर बात को,
मैं हूँ निपट अनपढ़, मुझे पढ़ना तक नही आता!
दिखा दो अपनी आंखें खोलकर दिल के आईने को,
मुझे आँसुओं की जुबान का तज़ुर्मा भी नहीं आता!
जता दो पर्दे के पीछे की छिपी ख़्वाहिशों की मूरत,
मैं नही हूँ शिल्पी, मुझे पत्थर तराशना नहीं आता!
बहा लो मुझे भी अपने संग, जज्बातों के भंवर में,
मैं हूँ शांत समंदर, मुझे लहरें उठाना नही आता!
भर दो साँसे मेरी जिंदगी में, तेरी साँसों की तरह,
मैं बसर करूँ तो कैसे, मुझे जीना तक नहीं आता!
जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, जंहा भी हूँ, तेरे सामने ही हूँ,
समेट लो मुझे बाँहों में, खुद को बिखेरना नहीं आता!-
सब कुछ बिखरा रहता था,
जब मैं सो जाया करती थी...
सब कुछ बिखेर लेती हूँ,
जब मुझे सोना होता है ...!!-