कोई हो..,
जो समझे मुझे मेरी तरह,,, मेरे ऊपर के दिखवाए के जगह मुझे अंदर से समझे...,
वो जो मेरे गुस्से के वजह को समझे..,
मेरे नादानियों के पीछे के बच्चे को समझे..,
जो बिना कुछ समझाए, बिना कुछ बताए मुझे समझे..,
मेरे मुस्कुराहट चेहरों के पीछे कभी कभी के दर्द को समझे..,
जो बिना जताए , मेरे साथ बैठे,,
जो बिना जताए मेरी हरेक बात को समझे..
मुझे बस मेरी तरह अपना समझे..-
कहना है..,
और कही गई बात में वो बातें रह गई,,
और इसी उलझन में वापस कुछ बात हुई,,
फिर भी कहने वाली बातें अनकही रह गई..,
बात में कभी ऐसी बातें हुई ही नहीं,,
जिस बात में उन बातों को रखा जाए,..
कभी शब्दों की कमी हुई,,
तो कभी लफ्जों की..,
कभी लफ्ज़ निकले भी तो, उन लफ्ज़ों को सामने वाला समझा ही नहीं...-
बिन बात के अगर बात हो जाए...,
तो उसमें कुछ बात होती है..,
कुछ बात होने पर कुछ बात हो..,
तो वो बात कोई बात नहीं होती है...,-
मेरी मां....❤️..
मेरी मां है, मेरे किरदार में,
शिकायतों से दूर शुकराने के भाव में..,
नकारात्म से दूर साकारात्मक अहसास में..,
गम में खुद को समझाने वाले काम में..,
दिखती है अगर.. मुझमें कुछ अच्छा , उस अच्छाई में..
अच्छे सोचने के ढंग में ..,बोले गए अच्छे शब्दों में..,
गलत और सही के बीच , चुने गए अच्छे निर्णयों में..,
दिखावे से दूर सुकून भरे सच्चाई में..,
दूसरे के सामने दुख न जाहिर करते हुए मेरी मुस्कान में..,
मेरे पापा के किरदार में.., हर पल, हर जगह, इस निरंकार में..,
-
पहले से सब बेहतर होगा..
उम्मीदें और पॉजिटिव thinking wali सोचें..
अब होती नहीं...
क्यूंकि मेरे दिल से चाहने से भी वो सुकून आ सकती नहीं..
,, But आज से बेहतर कल होगा, की उम्मीद मैं रखती हूं,,
और पॉजिटिव thinking wali soch me jiti hun-
मैं अब तेरे में ही हूं...
तू तो निकलता ही जा रहा है..
या मैं ही धीरे हूं...
तेरे बारह महीनों वाले डिब्बे की चौथा डब्बा पार हो रहे है...
बहुत उम्मीद है तेरे साथ अपने मंजिल तक जाने की..
तू तो सुबह से दोपहर फिर शाम..
एक दिन से दूसरा दिन होते हुए पार होता जा रहा है..
आज सोमवार से इतवार होता जा रहा है..
तू तो अपना पन्ना पलटता ही जा रहा है..
मुझे भी साथ तेरे चलना है..
हां मुझे भी अपने कहानी के पन्नों में एक नई कहानी को बुनना है...
तेरे तरह ही मुझे हर रोज चलना है..
मुझे भी जल्द सुनहरे पन्नों में पहुंचना है..
-
मैं
हां मैं उलझी हूं, सुलझी भी हूं....
हां मैं कभी कुछ..,
तो कभी कुछ और ही हूं...,
कभी परेशान तो कभी खुश बहुत हूं..,
हां कभी नाराज़ हुई भी तो ..,
शिकायतें भी नहीं..,
हां कभी दुखी हुई भी तो बताई भी नहीं..,
हां मैं वो भी हूं.., जिसे कोई जाना भी नहीं..,
हां मैं कभी खुद को समझाती तो कभी खुद ही समझ जाती..,
कभी कभी खुद के सवालों की जवाब, खुद ही बन जाती..,
हां मैं कभी कुछ तो ..कभी कुछ और ही हूं..,-