अब नहीं जाता हुँ मैं उसके शहर में
सुना है बारात आई थी गांव से शहर में-
// चाँदनी रात //
झिझकता चाँद,झिलमिलाते तारे,
बादलों से झांकती चाँदनी पुकारे.
इंतज़ार है आज नई कहानी का,
चाँद हुआ दिवाना चाँदनी के रूप का.
चाँद को चाहने वाले तो बहुत हैं,
चाँद की चाहत तो केवल चाँदनी है.
बेवजह सुबह से कर ली दुश्मनी है,
रेशमी स्मृतियों के झालर के आशियाने में.
हसरतों के हाथों पर लगाकर मेहँदी,
उम्मीद की डोली में सजी है चाँदनी.
टिमटिमाते तारों की बारात लिए साथ,
चाँद की चाँदनी से वादे,वफ़ा की रात.
कसमें-वादे,खुदा की खुदाई की रात,
श्वेत,शुभ्र,पाक मोहब्बत फ़ना होने की रात.
मचलते अरमानो को सँभालने की रात,
चाँदनी की विदाई की वेला में ,
अश्रु-पूरित,नम-नयनों की बातों की रात.
चाँद के चाँदनी से पवित्र मिलन की
शरद ,श्वेत,मख़मली सपनों की
अद्भुत,अविस्मरणीय रात..!!-
आंखों में पानी बाहर बरसात है
मेरे गम में प्रकृति भी मेरे साथ है
है सुहाना मौसम क्या शाम है
साथ में पकौड़ी सौतन उसके साथ है
प्रकृति भी अजीब है
मेरे और उसके साथ है
कैसी उलझन कैसा प्यार धोखों की है बारात
ना वो साथ ना प्यार, लोगो के साथ है बारात
कुछ उसके कुछ मेरे साथ है
गलती मेरी या उसकी सब एक दूसरे के साथ है
आरोप, प्रत्यारोप व उलझन की है बारात
सबको है इंतजार ,कब है दूसरी बारात
नई दुल्हन दूल्हे का इंतजार है
ना कोई संस्कार ना रिश्तों की बात है
बस सब आजकल मजाक है
कल फिर बारात है
।। अनिल प्रयागराज वाला ।।-
हमारी पहली मुलाकात ने ,कुछ यूं शुरुआत कर ली,
मुस्कुराए हम दोनों , आंखों ने दिल की बात कर ली।
इस कदर दिल में उतर जाएंगे वो , कहाँ खबर थी
पहले पहर में उन्हें सोचने बैठा ,और रात कर ली
मेरे गुमशुदा सफर में , हमसफ़र हैं उनकीं यादें,
कुछ यूँ पक्की उनसे प्यार की ज़ज़्बात कर ली ।
जितनी दफा चाँद को देखा, उनका दीदार हुआ,
गुज़र ना सके उनके बगैर वो, हालात कर ली।
ठंडी हवाओं के झोंका ,उनकी खुशबू बहा लाया है
खुली आंख से मैंने, उनके यादों की बारात कर ली।-
जब से "ब्रम्हा" ने सृष्टि रची तब से आज तक,
"बारातियों" को कोई "प्रसन्न" नहीं रख सका,
उन्हें "दोष" निकालने और "निंदा" करने का
कोई-न-कोई अवसर मिल ही जाता है,
जिसे अपने घर "रोटीयां" भी मयस्सर नहीं,
वह भी "बारात" में "तानाशाह" बन बैठता है..!!
:--किताब निर्मला(प्रेमचंद)
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अंत की शुरुआत कुछ शुरुआत के शुरुआत जैसा हो..
दर्द का जश्न भी हो और यादों के बारात जैसा हो..-
बारात तेरे आंगन खड़ी है
और तू लाल जोड़े में खड़ी है
तू हो जाएगी आज किसी और की
यह बात दिल पर लगी है।।-
दौलत हमने मोहब्बत की, कई बरसों में जोड़ी थी
तेरा इनकार एक सुन कर फिर हम खैराती हो गए
महफूज़ रखने का मेरे सब राज़ वादा तुम्हारा था
शहर की ख़बर कहो कैसे? मसले मेरे ज़ाती हो गए..
छोड़ दिया था महफिलों में किसी से गुफ्तगू करना,
ज़िक्र किस्मत का फिर आया और हम जज़्बाती हो गए...
एक शख़्स के घर बारात ले जाने का अरमान था,
उस शख़्स के फिर एक रोज़ हम बाराती हो गए....-