vijay thakur   (Vijay Thakur)
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Joined 19 February 2019


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Joined 19 February 2019
9 MAR AT 19:19

तेरी आंखों को मैं कुछ यूं पढ़ लूं,
ना दिल में छिपे जज़्बात रहें.
एक तू रहे बस मेरे साथ सफ़र में,
नहीं परवाह क्या फिर हालात रहें..
मेरे शाने पर तू सर रखे,
मेरे हाथ में तेरा हाथ रहे...
इस जहां में और इस जहां से परे,
बस तेरा मेरा साथ रहे....

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10 DEC 2024 AT 23:38

बिछड़ कर तुमसे मैं होश में आया,
धीरे धीरे फिर इश्क़ की खुमारी गई.
एक रोज़ तुम गई मेरी ज़िंदगी से,
एक अरसे बाद याद तुम्हारी गई..
जब कभी खेली मोहब्बत की बाज़ी,
हर दफ़ा वो बाज़ी हारी गई...
ज़िंदगी बसर हुई इस तरह से फिर,
गुज़ार ली जैसे भी गुज़ारी गई....

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30 NOV 2024 AT 2:08

एक अजब सी बेचैनी है दिल में,
ना जाने क्यों मुझको करार नहीं है?
किस को तकती हैं ये निगाहें मेरी,
किसी का भी तो इंतज़ार नहीं है..
इतना तो मोहब्बत करके हमने जाना,
कुछ ख़ास फायदे का ये कारोबार नहीं है...
कहीं खो गई मेरी आंखों की वो चमक,
सुना है सुर्ख उसके भी अब रुखसार नहीं हैं....
एक सेहरा सा जलता है दिल बेचारा,
और बारिश का भी कोई आसार नहीं है..
ये दास्तान है शायद मुकम्मल हो चुकी,
बस हम हैं जो मानने को तैयार नहीं है....

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12 AUG 2024 AT 12:03

कह दो जो मुझे के लौट कर आओगी,
ताउम्र फिर इंतज़ार मैं तुम्हारा करूंगा.
गर ना आई तुम अपना वादा निभाने,
तुम्हारी यादों से ही फिर गुज़ारा करूंगा..
मिले मौका जो गुज़रे वक्त में जाने का,
फिर उन गलियों में तुमको निहारा करूंगा...
यूं तो तुमसे इश्क करना एक ख़ता थी,
है यकीन मुझे ये ख़ता मैं दोबारा करूंगा....

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3 AUG 2024 AT 0:42

लेकर तन्हाई अक्सर आती हैं रातें,
याद आते हैं लम्हे, याद आती हैं बातें.
कोई दो पल ही सही बैठे साथ मेरे,
सुने जो मुझको अंदर से खाती हैं बातें..
दिल की ना दिल में रखी जाए कुछ भी,
रह जाए अनकही तो फिर सताती हैं बातें...
एक दौर था के बस हमसे खुलती थी वो,
किसी और को सारी अब वो सुनाती है बातें ....

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12 JUL 2024 AT 12:57

निकला था वादों की एक फ़ेहरिस्त लिए,
कुछ निभा कर आया कुछ तोड़ कर.
चल रहा हूं एक मुद्दत से सफ़र में,
मैं कुछ किस्से कुछ यादें जोड़ कर..
कुछ अजनबी मिले, वो हमराही बने,
कुछ अपने चले गए हाथ छोड़ कर...
कभी खुशी मिली तो कभी सबक मिले,
मुझको जीवन के हर मोड़ पर....

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7 JUN 2024 AT 22:13

कितने किस्से किए हैं साझा इस से,
मेरी अपनी है ये रात पराई थोड़ी है.
है मंज़ूर यूं तो इसका अंधेरा भी मुझको,
इक ज़रा चांदनी में कोई बुराई थोड़ी है..
फ़क़त दावे किए लोगों ने मुसलसल,
किसी ने मुझसे मोहब्बत निभाई थोड़ी है...
आवारा कर दिया उसके वापसी के वादे ने,
कैसे घर को जाऊं? वो लौट कर आई थोड़ी है....

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18 MAY 2024 AT 12:11

दिल में कोई शिकवा नहीं किसी से अब मेरे,
हां! आंखें अभी मेरी अगर नम हैं तो क्या?
खुशियां भी घर मेरे आएंगी किसी रोज़,
अभी फिलहाल मेरे मेहमान ग़म हैं तो क्या??
फिर से चोट मोहब्बत की, खाने की आरज़ू है,
हरे अब भी पिछली दफ़ा के ज़खम हैं तो क्या???
नहीं फुर्सत अपने पास के अपने हाल पर रो लें,
हसरतें अपनी हज़ारों हैं, समय कम है तो क्या????

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5 MAY 2024 AT 22:51

सामना हो गया ख़ुद से अगर,
कहीं किसी रोज़ पुरानी यादों में.
पूछूंगा ख़ुद से क्या पाया तुमने,
करके ऐतबार किसी के वादों में??
क्या उसने कभी चाहा भी था तुमको?
जिसे मांगा था तुमने सब फरियादों में...
वो इश्क़ नहीं उसकी ज़रूरत थी शायद,
थी इतनी समझ कहां हम सीधे सादों में....

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24 MAR 2024 AT 0:43

कल शाम कुछ जाम और यार साथ थे,
याद धुंधली धुंधली सी है उस महफ़िल की.
कुछ किस्से पुरानी यादों के फिर छिड़े,
हुई तारीफ रात तारों से झिलमिल की..
फिर चला दौर मोहब्बत के ग़म का,
की साझा तकलीफ रक़्स-ए-बिस्मिल की...
ज़िक्र किया जो दास्तां का हमने अपनी,
एहसास हुआ यही थी कहानी हर दिल की....

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