𝙷𝙴𝙼𝙰𝙽𝚃 𝟾𝟺𝚈𝙰   (the_perfectwonder)
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Joined 13 January 2020


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"बहुत कुछ"

वादा करता हूं एक बार
फिर  मैं अपने आप से,
छोड़ रखा है अधूरा  जो
अबतकल,हाँ उसी ख्वाब से।

समंदर में पानी के अलवा,
बता दूँ और भी है बहुत कुछ।
चंद मछलियां पालकर जो,
इतरा रहे हैं,हाँ उन्हीं तालाब से।।

हार बैठा है दिल जो शख्श,
तुमसे बस यूँ रूबरू होकर।
खो दोगे बस एक पल ही में,
खेलोगे अगर, ज़िद्दी दिमाग़ से।।

संभलकर चलना तुम,
सुनो एकलौते चिरागों।
जीत और सब तय होना है,
बस इसी एक, तपति चराग से।।

ताप की चोट से  ही,
सीखा है निखरना जिसने।
उसी चमकते हीरे को
डराने चले है,लोग अब आग से।

-



"गम"

कमा ही नहीं पाया जिसे
गँवाने का उसे डर कैसा?

पियूँ भी और जीवित रहूँ,
उसने दिया जो,जहर कैसा?

तबाह सब हैं प्रेम में पड़कर,
रोना ना पड़े जहाँ,शहर कैसा?

नहीं लौट सकता उदासी के साथ
रह रहा हूं जहाँ, वो घर कैसा?

खाक सब हुए हैं,खास रहकर,
ना चले टूटकर तो सफर कैसा?

-



ये जो गांव से दूर शहर है,
पता करो, वही जहर है।।

-



शहर के शोर में यूं हीं नहीं खामोश है वो शख्श,
कोई बहुत ज़ोर से चीखा है उसकी आवाज़ पर।

-



"व्यक्तित्व"

निश्छल  हूं मैं प्रेम में,
शांति  में  मैं  संत  हूं।
बदले में  मैं  पत्थर हूं,,
विश्वाशघात में अंत हूं।।

-



"आज़ादी ?"

ये जो तुम हमे आज़ादी का,
मतलब समझाने में लगे हो।
ये सब छलावे हैं तुम्हारे बस,
कुर्सियां अपनी बचाने में लगे हो।

सुरक्षित नहीं है दरिंदो से,
अब ये सारा शहर तुम्हारा।
तुम ही क्यूँ की शाहूकारों के,
चिरागों को बचाने में लगे हो
                             ये जो आज़ादी का मतलब......

कौन देगा यहाँ सजा उसे,
ढूंढ़ भी लूँ गर मुजरिम मैं।
तुम ही अदालत हो और,
तुम ही सबूत मिटाने में लगे हो।।
                               ये जो आजादी का मतलब.....

कैसे छोड़ दूँ चहचहाने को,
घर की लक्ष्मी को बाहर मैं।
लुटकर आबरू उस श्रृंगार की,
उसकी बोली लगाने में लगे हो।।
                              ये जो आजादी का मतलब....

-



"किताब"

एक दफा मिलो अगर तुम तो ,
ज़िन्दगी की किताब दिखाऊं।।

प्रेम कहकर  जिसे  तुम,
हर दफा मुकर जाते हो।
तेरे चेहरे का आज तुम्हें,
मैं  वही  नक़ाब दिखाऊं।।

झूठ ,फरेब , और धोखा,
सब सिखने लगा हूं अब।
तुम्हारी किस्म के तुमको,
मैं  हर  जवाब  दिखाऊं।।
                              एक दफा मिलो अगर....

बीमार पड़ा है एक दिल ,
काफ़ी दिनों से प्रेम में।
कहता है मर जायेगा गर,
नाम तेरा इलाज बताऊँ।।

छोड़ा था जिस समंदर में,
मुझे तुमने डूबता देख कर।
पार  कर  आया  हूं आज ,
तुम्हें वही सैलाब दिखाऊं।।
                              एक दफा मिलो अगर....

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"सवाल"

यूँ ही ज़ब हम किसी को,
अधूरा छोड़  जाते हैं।
या फिर रह जाते हैं हम,
अधूरे किसी के छोड़ जाने से।... तो

                                        सवाल तो बनते हैं ना....

अब सच में डराने लगे हैं वो,
पता नहीं कितने बहानों से।
नहीं डरते थे कभी जिससे हम,
किसी भी चीज में मात खाने से।... तो

                                           सवाल तो बनते हैं ना...

बिना कहे कभी सब समझ जाते,
बस यूँ ही लबों के गुनगुनाने से।
अब यूं  ही अगर हर मरतबा,
वो ही डरने लगें मेरे साथ आने से।....तो
                                          सवाल तो बनते हैं ना.

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