मुझे ये गरजते बादल आदमी लगते हैं,
और बरसती बूंदें, औरत;
एक आदमी जब ऐसे ही चीखता- चिल्लाता है,
तब इन बूंदों की तरह औरत भी बस बहने लगती है!!-
दहकते अंगारो से प्रीत निभाया करता हूँ,
ख़्वाब जलाकर मैं रोज़ उजाला करता हूँ!
एक झलक की ख़्वाहिश लेकर मुद्दत से,
मैं बादल में रोज चाँद निहारा करता हूँ!
एक लहर आती है बह जाता है सबकुछ,
रेत पर जब जब महल बनाया करता हूँ!
असआर मेरे आबाद हुए, एहसान है तेरा,
मैं ग़ज़लों में तेरा अक्स उतारा करता हूँ!
मेरी बेदाग उल्फ़त पर हँसते हैं लोग यहां,
क्योंकि आसमाँ सी हसरत पाला करता हूँ!
अक्सर सरे आम नंगे हो जाते हैं पाँव मेरे,
जब जब चादर से पांव निकाला करता हूँ!
मत पूछ "राज" से यूँ मोहब्बत की बातें
याद में तेरी मैं ऐसे वक्त गुजारा करता हूँ! _राज सोनी-
बादलों के बीच है घर तुम्हारा
खुदा से रोज़ मिलते हो क्या ....तुम... ?
©️LightSoul-
काश और टूट के रो लूं
मन में जितनी पीड़ा है उसे अश्कों से धो लूं-
बादलों को गुरुर था कि वो उच्चाई पे है
जब बारिश हुई तो उसे ज़मीन की मिट्टी ही रास आयी-
एक चाँद बादलों में छिप रहा है
एक चाँद मेरी नजरों के सामने दिख रहा है
उसको देखूँ कि तुझको निहारूँ...
यूँ तो पढ़ते रहते हैं सब तारीफ़ में
कशीदे उस चाँद के कि अब मैं उस चाँद की
तारीफ़ करूँ या तेरी नजरें उतारूँ...-
अभी-अभी इक काफ़िला तेरे तसब्बुर का
मेरा शहर छोड़ कर निकला है,
आज फ़िर तेरी तरफ़ आसमां.. बादलों को
ओढ़ कर निकला है,
देकर यादों की चंद बूँदें
वो मेरे हिस्से की बारिश भी ले गया,
मुझे देखकर कुछ-कुछ तेरी तरह ही..
सावन भी अपना मुँह मोड़ कर निकला है,
मेरी भीगी पलकें देखकर भी.. यकीं ना आया बेदर्दी को
कहे.. यह आँसु ना जाने किसका.. ह्रदय तोड़ कर निकला है,
ना जाने क्यूँ तेरी राहें.. मेरी राह से जुड़ती नहीं
मेरा तो हर रास्ता.. तुझे मुझसे जोड़कर निकला है,
अभी-अभी इक काफ़िला तेरे तसब्बुर का
मेरा शहर छोड़ कर निकला है..!-