QUOTES ON #बस_यूं_ही

#बस_यूं_ही quotes

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27 DEC 2019 AT 17:11

जिसे उठाये फ़िरते थे आंखों में मख़दूम
वोहि आज मुझको मेरी नजरों में गिरा रहा था,

कितना रेहमदिल था वो ज़ालिम मेरा क़ातिल
काटे बेदर्दी औऱ आँसू भी बहा रहा था,

दर्द की इंतहा भी पूछे जख़्म मेरा
मैं देख हद मुहब्बत की बेहद मुस्कुरा रहा था,

अफ़सोस.., मैं जिस दिये को हवा से बचा रहा था
वो दिया ही कम्बख़्त मेरा हाथ जला रहा था..!

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#बस_यूं_ही😇

लांघ कर सब रीत की दीवार आयी थी,
मैं बहुत दूर से चलकर इस पार आयी थी;
चांद तकता था शर्माते जज़्बातों को हर रात,
तो मैं शर्म काटने को बनी तलवार आयी थी;
चुरा कर, ओट में रखी थीं मैंने दीवारें और पर्दे,
पुकारा तुमने और मैं पर्दे सब उतार आयी थी;
मचलने को, चहकने को, मैं उम्र कम समझती थी,
ख़्वाब था शायद, कि तुम्हें बाहों में भरती थी,
लगा था आसमां अपने छत पर, मैं उतार लायी थी;
पागलपन तो देखो, मैं भी क्या ख़ुमार लायी थी!?
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10 JAN 2019 AT 9:50

जिंदगी, फिर उसी एहसास से जुड़ना चाहता हूँ,
फिर पापा के कन्धों, से उड़ना चाहता हूँ,
अब तीसरे पहर तक, जगाती हैं आंखें,
फिर सुकून से बगल में, वो सिकुड़ना चाहता हूँ,
मिला दे गर हो सके तो, उस गुमसुदा बचपन से,
मैँ जवानी की रवानी से, बिछुड़ना चाहता हूँ,
इन करवटों में कहाँ है सुकून, उस मासूमियत का,
मैं सर के बल फिर, ओढ़लना चाहता हूँ,

काश मां के वो हाथ, फिर इशारे से बुलाएं,
में घुटनों के बल फिर से, कुरना चाहता हूँ....!

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20 DEC 2020 AT 20:24

'प्रेम' , व्यक्ति को स्वतंत्रता देता है...
इतनी कि जाते समय,
बिना किसी प्रश्न,
बगैर किसी शर्त,
...चुपचाप जाना स्वीकार कर ले।

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27 AUG 2022 AT 14:47

वो मेरी दुनियां है,
अर वो मुझे छोड़ पूरी दुनियां के ।

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18 OCT 2024 AT 18:35

हमारी महफ़िल में हम अकेले ही सहीं
तेरा एहसास ही काफी जीने के लिए

दिल की गहराई में छिपा लिया प्यार
सावन को बुलाया आँसु पीने के लिए

अजीब कश्मकश में उलझी हैं जिंदगी
अब कौनसी पगडंडी हैं चलने के लिए

तेरी यादों का घना साया चलता संग
राह पे मोड आ जाते उलझने के लिए

हर रोज ढलती शाम मायुसी लाती हैं
इंतजार करूं सुबह का सुलझने के लिए

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24 FEB 2022 AT 9:34

अरी भाग्यवान!
तुम्हारी हथेलियां छोटी-छोटी सी
थक जाती‌ हैं..
फिर भी मरी सुकून कहां छोड़ आती है!
सच कहो,
इतनी लापरवाह कब से और क्यों हुई?
एक-एक दिन
बन-ठन काहे नहीं शृंगार से इठलाती हो?
छोड़ो भी
अब इसकी, उसकी, सब जन मन की...
बतलाओ कैसे इत-उत
'विस्मृत स्वयं' लिए व्यंग्य व्यंजना पी जाती हो!

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1 AUG AT 12:00

मनचाहा अकेलापन
अनचाहे रिश्तों से
बेहतर है ...

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30 OCT 2019 AT 21:32

आज भी हलचल है
तेरी मेरी बातों की
जो ना कभी हो सकी
उन मुलाक़ातो की
वो बातों की शरारतें
बंद है यादों की गठरी में
जो खुल जाए तो आज भी
महके वो यादें हमारी बातों की

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27 APR 2019 AT 12:43

लगता है ,

सम्भाल कर लाना होगा उनको पास में अपने
उन्हे नहीं पता आजकल मोहब्बत की गर्म हवाएँ चल रही हैं लू नहीं है ये

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