आँखों से बिखरती है उसकी, रूह की ख़ुशबू
छुपाने की लाख बेज़ा कोशिशों के बावजूद !-
Dreams ...Life ...
Fantacies ... Fiction
{एक अदद... read more
प्रेम में मनुज क्या कुछ नहीं बन जाते...
होने को तुम उसका रक्षासूत्र भी हो सकते थे
लेकिन तुमने चुना होना स्वर्ण कंगन...
तुम उसकी बन्द मुट्ठी की ताकत भी बन सकते थे
लेकिन तुमने चुना अंगुठी बन जाना...
उसकी करधनी बनने से कहीं अच्छा होता
तुम्हारा उसकी कटारदानी बन जाते ...
बनना था तो उसके सर का छाता बन जाते
लेकिन तुम्हें स्वीकार था उसका घूंघट बनना ...
होने को तो तुम कानसर भी हो सकते थे
झुमका होना ही क्या आवश्यक था...
चाह सकते थे पादुका हो जाना
उसकी पायल होने के बदले...
या फिर तुम बन सकते थे उसके कंठ से फूटती ध्वनि
बजाय उसका नौलखा हार होने के...
तुम मित्र बन सकते थे उसका प्रेमी बनने के पहले ...
सच मानो,
स्त्री के जीवन में सिंगार से अधिक महत्व स्त्रीत्व का होता है!-
मानव 'जीवन' एक यात्रा है...एक खोज,
प्रेम की, सत्य की, सम्मान की और निष्ठा की,
जो स्वयं से आरंभ हो कर,
अंततः ...
स्वयं पर ही समाप्त हो जाती है।-
कितना आसान रहा उसका मुझे तबाह करना,
मिरा हर नक्श-ए-पा उसकी ज़द में था !-
दुनियादारी के चलते लगे,
हर घाव को भर देती हो...
तुम मेरी 'आत्मा' का मरहम हो,
सुहानी सी लड़की !-
कितना कुछ वो सहती है,
फिर भी मौन है सदियों से,
'धरती' का दुःख किसने जाना!-
और अंत में
बस इतना ही चाहा मैंने कि
पंछी बेहिचक कांधे पर बैठकर चहचहाएं,
पग रखूं धरा पे तो चींटी राह में न आ जाए,
वो बरगद की गिलहरी हाथों से दाना लेती जाए,
गईया और उसके बछड़े देख के हर्ष से रंभाएं,
तितली छुवन से विचलित हुए बिना हाथों पर बैठ जाए |
बस इतना सा मुझ में खुद को बचा देना दाता...
कि तुझसे नज़र मिले तो लजा के झुक ना जाए !
-
किसी भी व्यक्ति का पौरुष,
उससे भी बढ़कर मनुष्यता,
इस बात से जानी जा सकती है कि
वह स्त्री की 'ना' को किस तरह से लेता है।
....-