Rashi singhai   (Lali)
458 Followers · 13 Following

read more
Joined 21 May 2020


read more
Joined 21 May 2020
31 MAR AT 20:08

चहकना भूल गया न जाने कितने प्रेमी यहां,
प्रेम ने प्रेम के नाम पर जा जाने कितनी हत्याएं की है।

-


31 MAR AT 14:24

कितने ख़ूबसूरत होते होगे वो मर्द
जो अपनी प्रेमिका से
धोखा खाकर भी
नज़्में लिखते होगे।

वो बचा हुआ प्यार जो
प्रेमिका के हिस्से न था
उसे कागल पर उकेरते होगे ।।

-


10 APR 2023 AT 15:40

Life is fun!
Life is Leela,
A play.....


Enjoy it
Don't be serious,
Relax...

-


1 APR 2023 AT 8:37

दुनियां की कोई भी ऐसी चीज,
जिस पर आप स्वयं की भावनाओं को नियंत्रित न कर सको
उसे जल्द से जल्द छोड़ देना ही बेहतर है ।।

-


5 FEB 2023 AT 21:15

जो समझ न सके चुप्पी मेरी
तो तुम हुए प्रेमी कैसे ??

-


23 JAN 2023 AT 21:08

गुरुवर आप मेरी शक्ति है, आनंद है, विशुद्धि है और ज्ञान है ।

माँ ने जीवन दान दिया और आपने ज्ञान दान दिया,
आप ही मेरे निर्माण की अभिव्यक्ति है ।।

गुरुवर आप मेरी पूजा है, भक्ति है, विधान है,
एक अबोध शिष्य के लिए ज्ञान की खान है ।

गुरुवर आप है तो मेरे जीवन में उजाला हैं,
आपके बिना तो रंगीन संसार भी काला हैं ।

गुरुवर है तो संवर है, निर्जरा है, निर्वाण है ।
गुरुवर आप ही मेरे जीवन का कला और विज्ञान है ।

आत्मा मेरी मंदिर है गुरुवर आप उसमें भगवान हैं ।
आपकी ज्ञान छाया में पलना मेरा अभिमान हैं ।

आपसे क्षेत्र दूरी, भक्ति तार को प्रबल करने का माध्यम हैं ।
और भावना प्रेषित करने का संप्रेषण ही साधन हैं ।

अब और कुछ कहना न शेष रहें आप सब अशेष जान ले ।
अनकहे अनसुने मेरे समूचे भाव पहचान ले ।

-


27 AUG 2022 AT 14:47

वो मेरी दुनियां है,
अर वो मुझे छोड़ पूरी दुनियां के ।

-


4 AUG 2022 AT 14:04

रूठूंगी मैं तुमसे एक दिन इस बात पर
के जब रूठी थी मैं तब मनाएं क्यों नहीं!

कहते थे तुम के प्यार है मुझसे
जब पूछा सबने तो ज़िक्र मेरा हुआ क्यों नहीं,
मुंह फेरे जब खड़ी थी मैं दूर
बुला कर पास अपने सीने से लगाए क्यों नहीं!

पकड़ कर बांहे तुम्हारी पूछूंगी मैं तुमसे
हक़ है तुम्हारा मुझपर तो जताए क्यों नहीं,
इस धागे का एक सिरा तुम्हारे पास भी तो था
उलझा गर मुझसे तो सुलझाया तुमने क्यों नहीं!

रूठूंगी में तुमसे एक दिन इस बात पर
के जब रूठी थी मैं तब मनाएं क्यों नहीं ।।



-


3 AUG 2022 AT 12:39

मेरी सुर्ख लाल बिंदी
जो जा चिपकी थी
तुम्हारे वदन पर,
अर मैने बेरहमी से
निकाल फेंका था उसे
उस बिंदी की भी
हाय लगी मुझे ।

-


2 AUG 2022 AT 9:19

अकेलेपन से ग्रसित हर व्यक्ति
शुकून की तलाश में
भागता रहता है भिन्न भिन्न चीजों की ओर,
कभी मोबाइल
कभी सिनेमा
कभी बाजार

भीड़ में खोजता है
किसी अपने ही जैसे व्यक्ति को
जो उसके अकेलेपन को
सुने, समझे, साथ दे और
दूर कर दे अकेलापन,
जो सम्पूर्ण करे दोनों को !

हताश निराश हो जब लौटता है व्यक्ति
उसी सन्नाटे की ओर और नज़र पड़ती है
अपनी ओर निहारते हुए व्यक्ति पर
ठीक मेरे जैसे व्यक्ति
चुप चाप, निराश, हताश,
अकेलेपन से भरपूर
क़रीब जाता है वह उसके
पर बीच में आ जाती है
कांच की एक अदृश्य दीवार
जो अकेलेपन से भरे व्यक्ति को दिखती नहीं
और ऐसे पा लेता है वो साथी
जो सदैव कैद रहता है आईने में ।।

-


Fetching Rashi singhai Quotes