QUOTES ON #बचपन

#बचपन quotes

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20 JUN 2020 AT 18:46

[wan•der•lust] /n./
सफ़र का अनुराग
भाग-६

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7 APR 2021 AT 11:16

कितना सुंदर बचपन का जमाना था,🤗
हर खुशी अपनी और हर गम बेगाना था।। 😃
न आगे तनाव और न पीछे का दौर था, 😇
पढ़ते थे स्कूल मे पर अपना ध्यान कहीं और था।। 🤪
खुले आसमा मे दोस्तों के साथ मस्ती थी, 😜
उस प्यारे से बचपन की अपनी ही कुछ हस्ती थी।।😆
हर शोर मे एक प्यारी सी धुन थी, 🥰
अब हर धुन मे एक अज़ब सा शोर है। 😟
शायद ये जिंदगी में जिम्मेदारियों वाला मोंड़ है।। 😣

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12 JUN 2019 AT 16:56

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26 MAY 2020 AT 16:08

वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है

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3 DEC 2020 AT 13:46

वो मुँह फुलाकर कर बैठ जाती है......,
एक सुलझी-सी लड़की,
जिद्द कहाँ करती है।
परिपक्वता की उम्र से पहले अपनी ,
अड़ियल उम्र में परिपक्व हो जाती है।।
चुल्हा-चौकी हो,या हो विचार सब में,
अपना बचपन भूलकर ,
जिम्मेदार बन जाती है।
गुड्डा-गुड्डी,और खिलौनें इन सब में
कहाँ उसका बचपन बीता है,
"पापा की परी" नाम से ,
अक्सर मैं हँस देती हूँ।।
वो अक्सर मुँह फुलाकर बैठ जाती है,
क्योंकि एक सुलझी-सी लड़की ,
जिद्द कहाँ कर पाती है।।

Vandana jangir


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26 APR 2020 AT 8:09

मां ! बे - वक़्त सी मुस्कुराहट थी; बचपन की,
ये, बड़प्पन का तकिया चैन से सोने नहीं देता ।।

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20 OCT 2019 AT 15:35

मैं अपनी हर एक झूठी बात में सच्चा था...
हां ये उन दिनों की बात है,
जब मैं बच्चा था...

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11 JAN 2020 AT 16:11

अलमस्त नहीं मैं बचपन की तरह
ज़हन में यादों के टुकड़े जा-ब-जा हैं

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27 MAY 2020 AT 0:01

बचपन की बातें फिर से दौहराएँ हम,
आओ चलो फिर से बच्चे हो जाएँ हम!

नानी की गोदी में बैठें, सुनें किस्से,
हर बात उनकी सच मान जाएँ हम!

फिर से छुपाएँ कोई जुगनू को मुट्ठी में,
बरसाती पोखर में नावें चलाएँ हम!

फिर जाएँ गाँव की हदबंदी के बाहर,
जंगल-जलेबी और झरबेरी खाएँ हम!

डँटियाए फिर धूर्त कहकर कोई हमको,
बागों में जाकर हुड़दंग मचाएँ हम!

लगाएँ बहाने रोजाना छुट्टी के फिर,
तपती दोपहरी में साइकिल दौड़ाएँ हम!

जो भी मय्यसर हो मिल बाँटकर खाएँ,
एक टाफी के आठ हिस्से बनाएँ हम!

कुछ पल जीवन के झंझट भुला डालें,
परियों की दुनिया में कुछ पल खो जाएँ हम!

आओ चलो फिर से बच्चे हो जाएँ हम!

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6 FEB 2019 AT 13:17

खुद के बटुए से दस रुपये चुरा के रख लेता हूँ
ऑफिस के टिफ़िन में पराठा जैम चख लेता हूँ

भागते भागते कहीं मैं दूर तो नहीं निकल आया
माँ पिता को भूला नहीं कुछ ऐसे परख लेता हूँ।

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