मेरी विरासत, कुछ पुराने अहसास .
मेरी वसीयत, ये चंद अल्फ़ाज़ .
मेरा वारिस, ये पैग़ाम ए मोहब्बत .
मेरा वजूद , यादों में तुम्हारी ज़िंदा .
मेरी अहसियत, ये तुम्हारी वाह वाही .
कैसे कह दू कि, यतीम हूं मैं .
फ़कीर ही सही, पर सबसे अमीर हूं मैं .-
रात भर ऊँचे ख्वाब, देखता रहा फ़कीर,
...अपना ही इकलौता, कासा बेचकर ।-
मैं बड़ी आसानी से ये ज़िंदगी काट देता हूं।
जो कुछ कमाता हूं, फ़कीरो में बांट देता हूं।।-
जिस दिन मिट जायेगा पत्थर का लकीर,,
उस दिन भूला देगा तुम्हें, ये इश्क का फकीर।।-
कम नहीं जहां में प्यार मेरे दोस्त बस ढूँढने वाली नज़र चाहिए।
जो प्यार को एक बार समझ जाता हैं उसे वो उम्र भर चाहिए।
कब तक कोई अकेला ही ज़िंदगी बिताए इस ज़िंदगी में यारों।
हर किसी को ताउम्र साथ रहने वाला एक हमसफ़र चाहिए।
जो हमारे इस दिल की बातों को "बिन कहे" ही समझ जाए।
हम सब को ओ साथी ऐसा ही एक प्यारा सा दिलबर चाहिए।
कि बस हम उनके लिए तड़पे और उनको हमारी कदर न हो।
इश्क में हमें महबूब हमारा हमारी तरह ही "बेसबर" चाहिए।
आज आए और दिल बहलाकर सपने सजाकर कल चला जाए।
चार दिन की ख़ुशहाली वाला नहीं, सनम हमको ता उमर चाहिए।
उसके बाद कोई और न दिखे मुझको और न देखना चाहूँ मैं कभी।
जब भी देखूँ वो ही दिखें ओ मेरे रब्बा मुझको ऐसी नज़र चाहिए।
उसकी खोज ख़बर मुझे मिलती रहे तो दिल को करार मिलता रहेगा।
हर पल हर लम्हा उसके साथ क्या हो रहा, मुझको ख़बर चाहिए।
बे रास्ता बे मंज़िल बे इश्क़ चलना गँवारा नहीं है मुझको "अभि"।
जो उससे शुरू होकर उस तक ही ख़त्म हो, ऐसी डगर चाहिए।-
जब तक मेरे हाथ हैं,
तुम्हें हरगिज़ नहीं जाने दूंगा..!
गर लकीर न है हाथों में,
काट कर हाथ लकीर बना लूंगा..!
बस तुम साथ रहना मेरे,
ख़ुदा कसम तक़दीर बना लूंगा..!
इतनी मोहब्बत है तुमसे,
दो जिस्म एक ज़मीर बना लूंगा..!
मां-बाप बच्चे को समझेंग हीे,
तेरे लिए ख़ुद को फ़कीर बना लूंगा..!
बेपनाह मोहब्बत है तुमसे,
ख़ुद को रांझा और तुम्हें हीर बना लूंगा..!
दूर मत होना तुम मुझसे,
ख़ुद को तेरी आस में पत्थर शरीर बना दूंगा..!
इतना भटकूंगा तेरी चाहत में,
ख़ुद को हर पल भटकता मुसाफ़िर बना लूंगा..!
साथ मत छोड़ना एक-दूसरे का,
वरना ज़माने को मोहब्बत की तासीर दिखा दूंगा..!!-
शहरबंदी के हालात में फ़कीर चार दिवारी में बंद है
और जरूरत के नाम पर रईस की कमाई बढ़ती जा रही है ।-
रब की परस्तिश लिख कर करते है फ़कीरी में
ख़ुद को फ़कीर पुकारते दुनिया की अमीरी में-
देख-देख हाथों की लकीर
जोर से हंसने लगा फ़कीर
चंद लकीरें भाग्य कहलाती
सरहद सीमाएं बनी लकीर
चक्रवर्ती सम्राट चौखट चूमें
औलाद ख़ातिर पीर फ़कीर
रंक रंगदारी में माहिर होते
मजबूरी-नाम गाँधी अखीर
मस्त मौला फ़िक्र क्यूँ करे
अमीरों को भी कहे फ़कीर
...ब्रजेश
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