यही मुझे सिखाया गया
बस इतना ही मुझे आया है
नहीं सोचा मैंने कभी खुद का
बात जब भी मेरे आन पर आया है
जब बुरी नज़र पड़ी मेरे ही सम्मान पर
जान न्योछावर खुद की कर आया है
लोगों के पीछे जब मेरे अपने सम्मान को जाते देखा
तब खुद से अपना ही विश्वास उठ आया है
अपनों के लिए मैंने सर झुकाना है सीखा
झुका सर देख मेरा अपनों ने ही खिल्ली उड़ाया है
गोली लगी फिर भी शान से अडिग रहा मैं
हाँ मुझे सर धड़ से भी अलग करने आया है
मेरी शान मेरे मातृभूमि की ख़ातिर मैं कुछ भी कर जाऊँ
मेरे पवित्र "माँ" के लिए "अमर" अपनी जान भी देने आया है-
प्रेम तो यहाँ हर किसी ने किया...
फिर भी देखो कितना फर्क रहा....
दिल रोया इश्क़ में
और टूटकर बिखर गया...
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कलम ने हिम्मत की... उठी...
चली अथक वो मीलों तक...
और पूरा का पूरा एक प्रेमग्रंथ रच दिया.....
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जो बातें आपको खुद कहनी चाहिए, आप उसे सामने वाले से सुनने का इंतज़ार कर रहे हैं। प्यार में इससे भयानक स्थिति कोई नहीं होती।
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पुन: कहती हूं..
किसी शब्द में नहीं
वह सामर्थ्य
जो उम्मीदों की
टूटन से
उपजी पीड़ा को
बयां कर सके!
और, ना ही
धरती की
किसी नदी में
वह मिठास...
जो समुद्र का खारापन
तनिक कम कर सके!-
मैंने बारिश में भीगना चाहा
चौक में जंगल उग आया
बारिश में क्या था ये जानना कौतूहल था
तो एहसास में भीग कर ही
प्रेम कर लिया मैंने ..
..
मुझे चाँद छूना था
रात की सीढ़ी चढ़ सफ़र पे निकली
हाथ कुछ तारे लगे
धरती पर पहुँचते ही वो जुगनू हो गए
प्रेम कल्पना है कोरी ..
..
प्रेम का हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं।
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प्रेम में...
नेत्र से निकले पहले अश्रु,
संसार का सबसे पवित्र जल बने....
उन पर लिखी कविताएं,
बनी ईश्वर के समक्ष
की जाने वाली प्रार्थना....
मैं जब जब करता हूँ प्रार्थना,
जलमग्न होती हैं आँखें.....-
किसे पाने को
ये अन्तरिक्ष
अनन्तकाल से
विस्तरित होता जा रहा है,
निश्चित रुप से प्रेम होगा किसी का,
जो उसे विस्तार तो दे रहा,
पर हासिल नहीं हो रहा।
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प्रेम में तुम्हारे...
न रुक्मिणी, न मीरा, न राधा होना है;
आधी श्याम हो चुकी हूँ, आधा होना है।-
वह कैसे कहेगी – हाँ!
हाँ कहेंगे
उसके अनुरक्त नेत्र
उसके उदग्र-उत्सुक कुचाग्र
उसकी देह की चकित धूप
उसके आर्द्र अधर
कहेंगे – हाँ
वह कैसे कहेगी – हाँ ?-