Neha Dwivedi   (Neha Mishra "प्रियम")
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Joined 16 August 2020


Joined 16 August 2020
23 APR AT 10:35

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20 MAR AT 16:49

नमस्ते

आप लोग किस तरह की किताबें पढ़ना पसंद करते हैं?
मेरे लिए किसी किताब का सुझाव है? जैसे कि क्या पढ़ूँ? किस बारे में लिखूँ? या कोई और बात अगर कहनी हो....

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18 MAR AT 11:02

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7 MAR AT 0:14

प्रिंसिपल सर

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22 FEB AT 18:22

ज़िंदगी परफेक्ट क्यों नहीं हो सकती?
क्या इसलिए कि कोई बुद्ध आएं
और जीवन को दुखमय बता सकें
सिखाएं हमें यथार्थ को स्वीकारना
चार आर्यों का सत्य समझा सकें

ज़िंदगी परफेक्ट क्यों नहीं हो सकती?
क्या इसलिए कि मनुज ईश से मुँह न मोड़े
माला जपे, करे प्रार्थना, हाथ हमेशा जोड़े
विस्मृत न हो न क्षण भर भी
कि जीवन क्षणिक स्वप्न भर है
जागृत रहे मनुष्य सदा ईश की राह न छोड़े

ज़िंदगी दरअसल परफेक्ट इसलिए नहीं हो सकती
कि मनुज का मन सीमा से अधिक न बढ़ जाए
बुद्धि के दर्पण पर अहम की धूल न चढ़ने पाए
अपने सुख में औरों से बेपरवाह न हो जाएं
और दुःख में दुःख से उभर कर आ पायें
अपने आँचल में यदि काँटे भी आयें तो
औरों के लिए प्रार्थना में बहार माँग सकें
और इस तरह अपने भीतर के थोड़े से ईश्वर को बचा सकें
जो जीवन दुःखमय भी हो तो उसके आँसू पोंछ पाएँ
हँसे जो हम पूरे साहस से तो ईश्वर भी मुस्कुराये।

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1 FEB AT 20:35

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13 JAN AT 20:35

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11 JAN AT 20:08

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11 JAN AT 12:41

आपके वर्तमान के निर्णयों पर भविष्य में आपकी प्रतिक्रिया
आपके निर्णय नहीं, बल्कि प्रकृति तय करती हैं।

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8 JAN AT 9:23

तुम्हारी आँखों में सपने हैं ऊँची उड़ानों के
देखें तो मैंने भी हैं ख़ाब आसमानों के

तुम्हारे पर उड़ने को बेकरार मगर बेकार हैं
मेरे हौंसलों की जमीन में भी पड़ चुकी दरार है

तुम्हारी आत्मा पर अपनाइयत् की चोट है
और इधर मेरी किस्मत की नीयत में भी खोट है

तुम बंधन में जन्मी तुम्हें बंधन में सुख मिलता है
मुझ शाहीन की आँखों में ये पिंजरा बड़ा खटकता है

दो जून की रोटी खातिर तुमने भाग्य स्वीकारा है
मेरी चुप्पी ने भी मेरी किस्मत को ललकारा है

अपनी एक सी नियति में भी अंतर इतना है
देखें तो कण भर समझें तो पत्थर जितना है

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