Priti Jaiswal   (Priti Jaiswal (Shivarga))
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तुकबंदी और उलझनों का मिश्रण है।
Joined 30 November 2017


तुकबंदी और उलझनों का मिश्रण है।
Joined 30 November 2017
5 JAN 2020 AT 11:42

किसे पाने को
ये अन्तरिक्ष
अनन्तकाल से
विस्तरित होता जा रहा है,
निश्चित रुप से प्रेम होगा किसी का,
जो उसे विस्तार तो दे रहा,
पर हासिल नहीं हो रहा।

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2 JAN 2022 AT 3:30

काश दिल में झांकने का कोई तरीका होता
तो देख पाते की मेरी तस्वीर कैसे हटाई है?

वो खुद ब खुद धुंधली हुयी थी,
या उसे तुमने अपने हाथों से जलाई है।

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26 MAY 2021 AT 8:38

मेरी सारी इबादत लौटा दी गयी,
कहके "पूरा करने की ताकत हममें है ही नहीं।"

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17 MAY 2021 AT 16:13

इश्क के भंवर में डुबकर
कब कौन जाने, है जाना कहां?

उकेर के, राह सारी, अब तुम्हारी
मैं कर रही इंतजार इंतहा...

कब? कौन बिछड़ा सा मुसाफ़िर
होना चाहे खुद में तबाह,

मैं कर रही इस इश़्क में
खुद को तबाह, होकर रिहा।

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17 MAY 2021 AT 16:04

ज़ेहन से उसको निचोड़ दे, आंखों को दे बंजर बना,
जो चाहे तुझको भूल जाना उसको तू दे मंज़र बना।
शाख़ में लगने लगे जब कोंपलें कुछ नए उम्मीद के
तू काट आ वो कोंपलें, शाख़ से ही दे खंजर बना।।

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23 NOV 2020 AT 17:07

राह उगाना कीकर को;
प्रेम में पीड़ा सहने की
आदत तुम्हें पड़ जायेगी।

प्रेम डगर पर चलने वाले
राह उगाना नीम को भी ;
प्रेम में होगा जब मधुमेह
ये राहत तुम्हें पहुँचायेगी।

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25 SEP 2020 AT 10:04

चाहतें,
मुद्दतों से जो "अधूरी" रहीं,

सुनने में आया,
वही चाहतें तो "पूरी" रहीं।

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25 SEP 2020 AT 9:58

जो फाँद नहीं पाती थी,
घर की दीवार,
देखने को सिनेमा ;

आज फाँद के चार किताब,
वो देख रही,
रंगमंच दुनिया का।

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12 AUG 2020 AT 10:09

शिकायतें नहीं करती, शिकायतों में रखा क्या है;
जो बदल गया, उसके बदलने से अच्छा क्या है।

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9 AUG 2020 AT 12:25

तुम्हारे घर से आते वक़्त

मैं अपनी दी हुयी किताबों के ढ़ेर से
उठा लाया
वो दीमक

जिसने मेरे कलम से लिखे तुम्हारे नाम पर
अपना घर बना रखा था।

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