Na Po Wri Mo (कविता लेखन)
शीर्षक--🌳पेड़ की छाँव🌳
सूरज की गर्मी से बचकर
सब पेड़ों की छांव में सुस्ताएँ
जाने कितनों ने यहां जन्नत पाएँ
FULL POEM IN CAPTION...-
न रुकी वक्त की रफ्तार न जमाना बदला...
पेड़ सूखा तो परिंदो ने अपना ठिकाना बदला...-
हर पेड़ फल दे
ज़रूरी नहीं
किसी~किसी की
छाया भी
बड़ा सुकून देती है।-
सूर्योदय के साथ
निकल पड़ते हैं परिन्दे
आबू दाने की तलाश में
सांझ ढले लौट आते हैं
फिर पेड़ों की छांव में.....
तपती दुपहरी और
दिन भर की भटकन से
मुसाफ़िर पाये सुकून
बस पेड़ों की छांव में....
गाँव-शहर की रौनक बदली
पर पेड़ों की नियति वही
पिघल कर सूर्य अगन से
करता शीतल जो आये
उन पेड़ों की छांव में......!
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बहुत सुकून मिला छाया में खड़ी घने पेड़ की।
सूरज भी बादलों के पीछे छुपकर देख रहा।।
चलती हुई इस ठंडी हवा से बहुत बातें की।
लगा मानो ए.सी. की चाहत में इसे भूला दिया।-
आज अपने गाँव आकर मन बहुत प्रफुल्लित हो गया है, प्रकृति के बीच और प्रकृति की गोद में सिर रख कर सोने की इच्छा होती है, कितनी शान्ति है यहाँ, नदियाँ कल - कल, छल - छल की आवाज़ करती हुई बही जा रहीं हैं, ये मनोरमा दृश्य मेरे मन को बार - बार आकर्षित कर रहा है....
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पेड़
तू खड़ा था राह में छांव बनकर
धरती पर मेरे जीवन की श्वास बनकर
मैं पसीनो में बेहोश था निष्प्राण होकर
मगर तू आया मेरे नूतन प्राण बनकर।
जब होश आया, मैंने तेरा फैलाव देखा
तेरी शाखों पर पंछियों का संसार देखा
धरा को भेदने वाली तेरी जड़ों से
संबंधों का व्यापक आधार सीखा।
घने काले बादल तेरे आस पास डोलें
रिमझिम बरखा की बूंदें तेरे साथ हों लें
तेरे पत्तों ने हवा देकर मुझे जिलाया
मैं धरा से धीरे-धीरे खड़ा हो पाया।
मैं लाया नहीं कुछ भी साथ मेरे
तूने अपनी शाखाओं पर लगे फल दिलाए
मैंने तुझको दिया नहीं था कुछ मगर
तूने मेरे लिए फूलों के बाग सजाए।
जब मैं हो गया चलने के लिए काबिल
तूने मुझे आगे के नए रास्ते दिखाए
तेरी दृष्टि से जब मैंने यह संसार देखा
तेरे जीवन में मैंने प्रकृति का समस्त सार देखा।-
पेड़ की छांव में महज़,
थके हुए मुसाफ़िर ,
नहीं रुका करते..।।
कईं मर्तबा पुरानी बातों,
और नई यादों की डोर,
भी इसी छांव के तले,
खुलती और बंधती हैं..।।-
हाँ मैं आकांक्षी हूँ
प्रकृति के आसपास रहने की
भाता है मुझे
हवा का चुपके से
स्पर्श कर जाना
कर जाता है तरंगित
झमाझम बूँदों का
भिगो जाना
किंतु
तरस जाती हूँ
कड़कती धूप में
पेड़ों की छाँव को
पेड़ नहीं दिखते
अब चौराहे पर
विलुप्त हो चुके हैं
छायादार वृक्ष
जो जकड़े रहते थे
मिट्टी को
जो संरक्षित करते थे
अवसाद की बाढ़ से-