खो कर के तुम में तुमको जैसे संभालता था,
कोई संभालता है या ख़ुद संभल गए हो,
सोचा था इश्क़ में तुम्हें भगवान बनाएंगे,
पर सोच से मेरी तुम आगे निकल गए हो,
मनमानियाँ तुम्हारी अब और बढ़ गयी हैं,
ना जाने किस तरह के व्यसनों में ढल गए हो,
दिन रात आँखें बरसी सावन की बूँद बन कर,
क्या बात है कि 'चन्दन' इतना बदल गए हो |-
🇮🇳"शीलं परम भूषणम्"🇮🇳
"आदर्श हमें जिस चरम बिंदु पर छोड़ता है, ... read more
"घेरे हैं आसमान में" आज बादल कुछ ऐसे,
घेर लेती हैं "तन्हाइयों में तेरी यादें" मुझे जैसे,
"भटक जाती हैं कश्तियाँ बिन किनारों के" जैसे,
"भटक रहा हूँ ज़िंदगी में" मैं भी आजकल वैसे..!-
तुम जिसे ढूँढते हो आज कल मेरे दिल में,
एक "मुद्दत से नहीं रूबरू हुआ" उससे..!-
"हृदय व्यथित" हो रहा है,
"विचार शून्य" हो रहे हैं,
"भावनाएँ समाप्त" हो रही हैं,
"मन अशांत" हो रहा है,
"वेदनाएँ चरम पर" हैं,
"आकाश शांत" हो रहा है,
"समय रुक सा गया" है,
"प्रलय आने वाली है..!"-
किसी घायल परिंदे से कभी ये पूछना तुम भी,
दिखा कर प्यार कैसे फ़िर उसी पर वार होता है,
न जाने किस तरह के लोग हैं जो तोड़ते हैं दिल,
पता है, "इश्क़ में इंसाँ बहुत लाचार होता है",
और जब से तोड़ा है तुमने भरम मेरी निगाहों का,
ये ज़र्रा - ज़र्रा जीवन अब मेरा दुश्वार होता है,
बहुत बेबस हूँ अपने हाल पर अब क्या कहूँ 'चन्दन',
मैं जब - जब साँस लेता हूँ तुम्हीं से प्यार होता है |-
"जितना लिखूँ वो कम" है,
हर ओर "यहाँ ग़म है",
एक मात्र सत्य "माँ" है,
ये "दुनिया एक भ्रम है",
औरों में इस "तरह का ज़ज्बात" नहीं है
"माँ पर लिखूँ मैं" कुछ, "मेरी औक़ात नहीं है..!"-
न जाने कौन सी किसकी लगी है बद्दुआ मुझको,
न जाने किसने मुझमें भर दिया है ये ज़हर अपना,
ये तन - मन टूट कर के खण्डहर सा हो गया है अब,
दिल-ए बर्बाद है, बर्बाद है अब ये शहर अपना,
हमारे सूरत-ए-हालात पर खाकर तरस देखो,
वो आए हैं हमारे पास बरसाने कहर अपना..!-
"किसी की याद" में आँसू बहा कर देखना तुम भी,
तुम्हें फ़िर ये समझ आयेगा कि "क्यूँ लोग रोते हैं..!"-
मुझे आज़ाद रहना है हवाओं संग ही बहने दो,
ये दुनिया झूठ कहती है ये जो कहती है कहने दो |
अभी मेरे तज़ुर्बों में कमी जो तुमको दिखती है,
मैं सब कुछ सीख जाऊँगा मुझे दुख और सहने दो |
मेरी तक़दीर के पन्नों में बस तन्हाई लिखी है,
मेरी साँसें मुझे बक्शो मुझे ज़िंदा ही रहने दो |-
कहाँ जाऊँ कि दूर - दूर तक अंधेरा है,
तेरी यादों ने मुझको हर तरफ़ से घेरा है,
मैं तो करता हूँ तुझसे इश्क़ मगर,
तूने नज़रों को आज मुझसे जैसे फेरा है ||
तूने दिल से निकाला है मुझको,
मेरे दिल में अभी तलक तेरा बसेरा है,
मेरे साथी तू डर गया है इस ज़माने से,
पर मुझे देख इस शहर ने कैसे घेरा है ||
सबकी उम्मीदें टिकी हैं मुझ पर,
मेरी उम्मीदों पर पानी सभी ने फेरा है,
लोग कर देते हैं अपनी तरफ़ से मेरी हाँ,
मुझसे भी पूछे कोई फैसला क्या मेरा है ||-