ये इश्क़ का दर्द ठहर क्यों नहीं जाता ये गुस्ताख दिल क्यों तनहाइयों को अब मिटा नहीं पाता मोहब्बत बेवफा से करके जब खाई है ठोकरे तो फिर क्यों उस बेवफा की यादों के महफिल सजाता
उनकी मोहब्बत के मुताबिक दिल लगाए कैसे अपने दिल के राज़ बताएं कैसे ख्वाबों का काफिला अपना था बड़ा खूबसूरत कशिश थी उनसे बहुत मगर जताए कैसे यह दिल करता है इबादत तेरे साथ की लेकिन हकीकत नहीं सुनती जज्बात की मेरी मोहब्बत का सिलसिला हुआ निराला की अपना दिल-ए-दस्तूर मैं बताऊं कैसे
मेरा नाम लेते ही वो भूल जाता है, इश्क उसको आता है मगर वो करना भूल जाता है । मुझे यूं मुस्कुरा के न देख बस यही तुझसे गुजारिश है, क्योंकि फिर मेरा यह दिल पागल धड़कना भूल जाता है.