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नज़र उठायें ढूंढ रहें हैं.. इस अंतरिक्ष में अपनी ज़मीं
पर भूल जाते हैं अक़सर कदमों के नीचे है सरजमीं-
मिलकर इक अभियान चलाएं
"पेड़ लगाओ प्रकृति बचाओ"
आस-पास हरियाली दिखे
कुछ ऐसा वातावरण बनाओ।
आने वाले उस कल के लिए
जिम्मेदारी अपनी सभी निभाओ।
आज पीढ़ी समझो इसको
प्रकृति बचाओ जीवन पाओ।
उपहार स्वरूप में वृक्षों को दो
प्रदूषित होने से शहर बचाओ।
वातावरण को शुद्ध रखना है
हरियाली सब मिल करके बढ़ाओ।
अपनों का हो सुनहरा भविष्य
"पृथ्वी का संतुलन बनाओ"।
©साक्षी सांकृत्यायन
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
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पृथ्वी पर बोझ मत बन
वक़्त आ गया कुछ तो कर
जीवन दिया है माँ बन कर
पृथ्वी की सुरक्षा अब हम सब पर
प्रदान किए सभी संसाधन
जिनकी थी मानव को ज़रूरत
अपनी इच्छाओं की ज़िम्मेदारी
उठानी होगी अपने सिर पर-
पृथ्वीवासी कर रहा नष्ट पृथ्वी की कहानी
तोड़कर प्रकृति-चक्र दे रहा प्राण कुर्बानी
भविष्यवक्ताओं की वो सत्य होगी वाणी
प्रसार-महामारी मनु तरसेगा अन्न-पानी
उत्तर-दिशा से आएगा महारोग-वुहानी
कफ पित्त ताप अंग निष्क्रिय निशानी-
पेड़- पौधे काट- काट, मचा दिया उत्पात
पृथ्वी बंजर हो रही, बढ़ा आज आपात..!!
जंगल के जंगल कटे, पृथ्वी हुई तबाह
सूरज की गर्मी बड़ी, भरते सब जन आह..!!
धरा का जलस्तर घटा, सूरज आग समान
दोहन करते प्रकृति का, बन कर सब अंजान..!!
जनसंख्या औ भुखमरी, है जैसे अभिशाप
पड़ता नित दिन प्रकृति पर, जैसे कोई छाप...!!
पृथ्वी दिवस मना बता, होगा क्या उत्थान
जब तक बने ना रक्षक, करें न जब तक ध्यान..!!-