साक्षी सांकृत्यायन   (©साक्षी "सांकृत्यायन")
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Joined 28 March 2019


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Joined 28 March 2019

खुद का वजूद मिटाकर के, उसको लिखने को चली थी मैं
जब पीछे मुड़कर देखा तो, तन्हा अकेली ही खड़ी थी मैं।

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बचपन की मोहब्बत को दिल से ना भूला देना
जब याद मेरी आए सीने से लगा लेना।



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हर दिन उम्मीद लगाती हूँ
हर रात अधूरी है मेरी।
जब भी चाहा कि बात करूँ
वो बात अधूरी रह गई मेरी।
बहुत शिकायत की मैंने
पर नही शिकायत सुनी मेरी।
कितना ख़ुद को समझाऊं मैं
उम्मीद भी धुंधली हुई मेरी।



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खुलकर हँसने का दौर कहाँ ,हल्की सी हँसी में जीना है।
किस्मत का कैसा खेल है ये,जो हंसता है उसे रोना है।
एक सीख मिली इस दुनिया से,ना हंसना है ना रोना है।
हँसने रोने में क्या रखा , इन सबसे नहीं कुछ होना है।

@साक्षी सांकृत्यायन










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नहीं आसान होता है
किसी के दिल में बस जाना
नहीं आसान होता है
किसी का अपना कहलाना
नहीं आसान होता है
किसी का प्रेम बन जाना
नहीं आसान होता है
प्रेम में खुद का खो जाना
नहीं आसान होता है
प्रेमी के दिल में घर बनाना।

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मन की खिड़की बन्द पड़ी थी
ख़ुद से ही मैं दूर खड़ी थी,
नया सबेरा आया एक दिन
खुशी से अब मैं उछल पड़ी थी।
नई चहक और नई उमंगे
कितने वर्षों बाद मिली थी,
दफ़न कहीं सीने में ख्वाहिश
आज वो इतने पास खड़ी थी।





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जिस दौर से आएं हैं हम तुम
उसका एहसास किया होगा।
सब कुछ रह जाएगा एकदिन
बस याद यही लम्हा होगा।
पहले जैसा अब नहीं है कुछ
कुछ तो गलत हुआ होगा।
तुमने सोचा तो..... होगा
आगे जीवन कैसा होगा।
बिखर रहे इस जीवन को
मिलकर के समेटना होगा ।

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जो तोड़े से भी ना टूटे ऐसा ये अपना बन्धन है
अटूट प्रेम से बंधा हुआ त्यौहार ये रक्षाबन्धन है।
सौभाग्य से मिला हमें ये पल ईश्वर तेरा अभिवंदन है
भाई मेरा खुश रहे सदा बस यही मेरा नित-वंदन है।

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अजीब उलझन सी है
बात और बेबात यूंही आहें भरना।
बिना किसी भी बात के
अपनों से बिन बात यूंही उलझे रहना।
सुकून चाहिए मुझे थोड़ा
तुम सुकून की डोर यूंही पकड़े रहना।
अभी बेचैन हूं शायद मैं
बहुत कुछ मुझको है सबसे कहना।

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चाय......! किसी का इश्क़ तो किसी की जान हो तुम।।
तुम्हारे ख़्याल का जो सुकून है मोहब्बत वालों की पहचान हो तुम।।
महफ़िल चाहे जिसकी भी हो हर किसी की ही पहचान हो तुम।।
बारिश की सोन्ही खुशबू में हर घूंट में इक मुस्कान हो तुम।।
अदरक इलायची और तुलसी संग सांसों में घुली मेरी जान हो तुम।।




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