आनन्दमय हो जायेगा मन
ये नजारा देख गांवों का
पेड़ पौधों व हरियाली है
मजा लो पीपल छावों का-
खेलता आया है जिसकी छाँव में
बचपन कई वर्षों से
उस पीपल को
कैसे मैं बूढ़ा कह दूँ?-
हम बड़ है #पीपल है हरदम जीवट है
हमसे ही वन है हमसे उपवन हैं।
पक्षियों के उदर तले बीजरूप हम हैं
जलाऊं हैं इमारती है भोजन में हम हैं।
अदृष्ट ज्ञान भांति जड़ मूल हम हैं
और कभी यज्ञ की आहुति रूप हम हैं।
शिलाओं पर उग जाए हम हठयोगी हैं
यदाकदा दरारों में भी अपना अस्तित्व है।
विस्तार कर जाए तो चहुओर वन है
उखाड़े जाए तो खतम सजीवन है।-
बचपन में
जहाॅं हमारा घर था
पीपल ही पीपल थे
बरगद ही बरगद थे...
(अनुशीर्षक में पढ़ें
कविता सिंह ✍️
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#MorningGyaan
Stay Away from *पीपल*
Ghosts n Souls, never piss on it.
Stay Away from *People*
Naive minds, will always piss you off.
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भूल गये सब गाँव की बातें
पीपल के उस छाँव की बातें !
चारों तरफ फैली हरियाली,
जैसे धरती ओढ़े हो चुनर धानी !
टेढ़ी-मेढ़ी वो पगडंडी, उनपे
इठलाती, चलती बच्चों की टोली !
याद आती है कभी वो बैलगाड़ी
आम-अमरूदों से लदी फुलवारी !
वो खेतों में खिलती खुशहाली
किसे याद कुएँ का मीठा पानी !
ऐसा होता था एक गाँव कभी
आओ बच्चों सुनाएँ तुम्हें कहानी!-
तुम सींग मारती गाय सी,
मैं कोने मे दुबका बैल प्रिये,
मैं सीधा सादा पीपल का पेड़ हूँ
तुम उसपे लटकी चुड़ैल प्रिये...!!!
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👸😛👸-
कभी मौका मिले तो आओ मेरे गॉंव में।
बैठेंगे बातें करेंगे हम पीपल के छाँव में।
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