पलटो जितने भी ज़िन्दगी के पन्ने,
ज़ेहन की दीवारों पर अक्सर
टँगी मिल जाती हैं तारीख़ें...!
लाख मिटाओ, खरोंच दो इनको,
जाने कहाँ से नक़्श यादों के
उकेर जाती हैं तारीख़ें...!
ख़ुद में कितने राज़ समेटे, जाने कितने क़समें-वादें
सब कुछ तो कह जाती हैं तारीख़ें...! वक्त की शाख से टूट गए जो, हाथ से हाथ छूट गए जो भूले-बिसरे किस्से सारे, दोहरा जाती हैं तारीख़ें...!
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