लौट आती हैं
सदाएँँ
अक्सर
टकराकर
किस्मत की
बंद किवाड़ों से,
जैसे
खाली हाथ
लौटा हो
श्रमिक,
दिनभर
ख़ाक छान
जमाने की!
-
रहनुमा बनकर वो समझ लेते हैं क्यों,
बाद उनके कोई सुनवाई नहीं होगी।
सूरज निकलेगा,न सुबह होगी जिसकी,
रात ऐसी तो कोई आयी नहीं होगी।-
खिली धूप सा हो यौवन, या
घन का श्यामल चितवन,
बलखाती यूँ नदियाँ जैसे
पनिहारन की लचकन ।
पेड़ो पे पत्तों को छेड़ जब
मदमाता हो चपल पवन,
अधखिली कलियों का जब
आकुल भँवरे कर ले चुम्बन ।
धानी-धानी ओढ़ चुनरिया
धरती सजे ज्यों हो दुल्हन,
सजनी का घूंघट खोल पिया
कर ले सतरंगी आलिंगन ।
धवल छटा बिखेर चाँद जब
सरकाये अमावस का चिलमन,
निहार उसे फिर धीर धरें सब
जो विरह-विदग्ध हो तनमन ।
बिखरे इन रंगों से हम भी
आओ रंग लें मन का दामन,
रंग बिरंगी कविताओं सा
देखो रंगा है हरसूं जीवन ।-
ऐ उन्मुक्त गगन के पंछी देख, मंजिलें तेरी रही पुकार,
आंधियों को अपने पंख बना के, एक बार तू परवाज़ तो कर !-
बड़ी अजीब है ये दुनिया,
रोज क़िस्से नये गढ़ जाती है,
लाख बचते हुए इनकी गलियों से गुज़रो,
सिर मलामत कई मढ़ जाती है।-
अलविदा 2021
पलटो जितने भी ज़िन्दगी के पन्ने,
ज़ेहन की दीवारों पर अक्सर
टँगी मिल जाती हैं तारीख़ें...!
लाख मिटाओ, खरोंच दो इनको,
जाने कहाँ से नक़्श यादों के
उकेर जाती हैं तारीख़ें...!
ख़ुद में कितने राज़ समेटे,
जाने कितने क़समें-वादें
सब कुछ तो कह जाती हैं तारीख़ें...!
वक्त की शाख से टूट गए जो,
हाथ से हाथ छूट गए जो
भूले-बिसरे किस्से सारे, दोहरा जाती हैं तारीख़ें...!
……………………-
लाख रटते रहो उम्रभर ज़िन्दगी के पाठ,
कुछ सवाल रह ही जाते हैं सदा बिना ज़वाब,-
माँ का आँगन
काश तेरे आँचल तले
तमाम उम्र गुज़र जाती
थाम कर उँगली, ओ माँ
तू बचपन मेरा फिर ले आती।
(पूरी रचना कृपया कैप्शन में पढ़ें)-
दीप जले जगमग जग सारा
प्रेम-सौहार्द का हो उजियारा
हृदय तल से है यही कामना
दुःख का हरसूं मिटे अंधियारा
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं-