क्या सज़ा है इश्क में देहरी लांघने की ये बता दो मुझे।
गर मैं जाऊँ तुम्हारे ख़िलाफ़ तो इश्क की सज़ा दो मुझे।
आवाम कहती है कि मुहब्बत पूजा की तरह होती है।
मैं तुम्हें चूमा करूँ सुबह-ओ- शाम ऐसी रज़ा दो मुझे।
रोज़ दिन ढले मेरा तेरी निगाहों के रु-ब रु मोहिसिन।
हर शाम रौशन हो तेरी जुगनुओं से ऐसे जला दो मुझे।
चाहत में बे तकल्लुफ़ की बातें और हसीन करामात।
गर दिल मे कभी आये तो बेशक इत्तला दो मुझे।
तुम कभी तमाशबीन न बनना मेरी मुहब्बत के सौदागर।
कभी कभी प्यार में "अर्जुन" तुम भी रुला दो मुझे।
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