ला कर छोड़ दिए हो जिस रास्ते पर ,कोई मंज़िल दिखती नही है।
खरीद लेता मै तेरे नाम की ख़ुशी मगर बिकती नही है।-
क्या सज़ा है इश्क में देहरी लांघने की ये बता दो मुझे।
गर मैं जाऊँ तुम्हारे ख़िलाफ़ तो इश्क की सज़ा दो मुझे।
आवाम कहती है कि मुहब्बत पूजा की तरह होती है।
मैं तुम्हें चूमा करूँ सुबह-ओ- शाम ऐसी रज़ा दो मुझे।
रोज़ दिन ढले मेरा तेरी निगाहों के रु-ब रु मोहिसिन।
हर शाम रौशन हो तेरी जुगनुओं से ऐसे जला दो मुझे।
चाहत में बे तकल्लुफ़ की बातें और हसीन करामात।
गर दिल मे कभी आये तो बेशक इत्तला दो मुझे।
तुम कभी तमाशबीन न बनना मेरी मुहब्बत के सौदागर।
कभी कभी प्यार में "अर्जुन" तुम भी रुला दो मुझे।-
निखरा हुआ है रुख तेरा कुछ बात जरूर होगी।
मुझसे न सही गैरों से तो मुलाकात जरूर होगी।
मुझे पूरा अंदाज़ा है मेरे बाद इश्क़ में "अर्जुन"।
किसी और कि मुहब्बत तुझसे बर्बाद जरूर होगी।
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बे खौफ़ हूँ मैं मुझे समंदर में डूब जाने दे।
न रोक मुझे आहिस्ता आहिस्ता करीब आने दे।
ऊजड़ चुके थे जो आशियाने दिल के कभी।
दे के दिल मे जगह अपने फिर से उसे बसाने दे।
कुछ तो बात है तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में।
मेरी हर शाम अपनी ज़ुल्फ़ तले बिखर जाने दे।
टूटा हूँ ज़ार-ज़ार मैं अपनों के दिए तानों से।
आज अपनी बाहों में मुझे फिर से पिघल जाने दे।
महकती है खुशबू तेरी साँसों के दरमियाँ।
समेट ले मुझे खुद में ज़र्रे-ज़र्रे में समां जाने दे.......।
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ज़रा सा छू कर तुम जिस्म में आग लगाते हो।
खुद रहते हो बज़्म में हमें तन्हाईयाँ दे जाते हो।
कैसे कहूँ कि कैसे कटती हैं आज-कल रातें मेरी।
कम्बख्त नींद में भी तुम ही तुम नज़र आते हो।
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मेरे प्रेम का साक्षी ये मंदिर वो बूढ़ा दरख़्त भी है।
बगीचे का जामुन का पेड़ और वो पनघट भी है।
काकी का दलान और रास्ते का सन्नाटा भी है।
वो खेत खलिहान और बबूल का काँटा भी है।
कूँए की बाट और पीपल की ठंडी छांव भी है।
गांव की हाट और वो नदी की बैरन नाव भी है।
तुम क्या भूलोगे मैं क्या क्या याद दिलाउंगा।
तुम जब भी आओगे मैं यहीं मिल जाऊँगा।
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मेरी तमाम बेताब रातें जो सितारों के आगोश में
कट गयीं
मेरी हसरतों की वो हज़ार ख्वाहिशें जो तन्हाइयों में
सिमट गयीं
एक तूफां आया जो बहा कर ले गया अश्क के समंदर के रेत को।
कितनी शिद्दत से लिखा था कहानियाँ उंगुलियों के सहारे
वो मिट गयीं।
वो मकाँ तेरी यादों का एक खँडहर में तब्दील हो के रह गया है आज
कदम रखा था जो दहलीज़ पार कर हमनें उसकी रूह मुझसे लिपट गयी।
क्या कहता उस से खामोश रहा सिसकता रहा मैं।
आसुंओ से लिखी इबारत प्यार के अश्को से कट गई।
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दिल इतना पागल सा है कि थोड़ा ही सही तुम्हें देख लूँ।
अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि हसरतों को रोक लूँ।
उफनाती नदी सा चंचल मन हिलोरे खाती लहरों जैसा।
तुम आ जाओ बारिश की बूंदों की तरह तुम्हें समेट लूँ।-
तुम कहीं नहीं हो मगर लगता है कि आस पास हो।
जितनीं चाहिए जीने के लिए सांसे उतनी ही खास हो
जरूरी नहीं कि मैं मिलूं तुम्हे उम्र भर के लिए"अर्जुन"।
मिलूँगा तुमसे उस जहां में तुम क्यों इतना उदास हो।
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तू पढ़ ले कुरान की आयतें
मैं पढ़ लूं चौपाई ।
मैं भी इंसा तू भी इंसा
फिर क्या फर्क है भाई।
मैं हिन्दू तुम मुस्लिम
ये बात कहां से आई।
मेरा भारत तुम्हारा हिन्दोस्तान
बस इतनी सच्चाई।
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