निःशब्दता के अजेय प्रतिमान की तदाकार स्थापिका
माटी के नश्वर तन में प्रतिमा
मुखरित अभिव्यक्ति सम्मोहित सी मुस्कान
श्रेष्ठशील की मनःवेदी
विभूषित ब्राह्मी ब्रम्हाणी
न अरि
नारी!!-
स्त्री
स्वयं
हो जाती
मौन बुद्ध
सहनशील
अप्रतिम मूर्ति
सदा काल जीवंत
(वर्ण पिरामिड काव्य प्रकार)-
है
आयी
शिशिर
झड़े पात
सर्द मौसम
बर्फीली हवाएँ
बेधती रक्तसंचार
कोहरे का चीरहरण
करती दिनकर रश्मियाँ
मुरझाये थेे रिश्ते सर्द जर्द
मुस्कुरा गर्मजोशी से खिल उठे।
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वर्ण पिरामिड
हे
कृष्ण
कन्हैया
तेरी माया,
रास रचैया,
मुरली बजैया,
गोवर्धन के धारी
है
तान
मधुर
सुरमई
मनमोहक
अधर पे लागी
मोहन की मुरली-
तुम
तुम्हारी सिद्दत
वो तुम्हारा बेइंतहा मोहबब्त
मेरे सलामती में की, तेरी इश्क़िया इबाबत
ख़ुदा क़सम, दिल से क़ुबूल है, क़ुबूल है, क़ुबूल है।।।-
पिरामिड
***
दें
शिक्षा ,
ज्ञान दें।
माँ शारदे
वीणा वादिनी
स्वर संसार दें
अज्ञान से तार दें ।
है
शिक्षा
संस्कार
व्यवहार।
पूर्ण विचार
कर आत्मसात,
दूर हो झंझावात ।
©anita_sudhir-
है
कुछ जादू
है कुछ कुदरती
नजराना ,दिमाग घुमा देता
तेरा यूँ ह मुस्कुराना ,क्या इतना
आसान था ,मेरा नजरा जाना ,सिवा
अब तेरे ,अब न है किसी का नजर आना
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