गुरु पूर्णिमा की बधाई
ईष्ट देव
कब मार्ग मिला दिशि हीन चली,उर भाव पड़े जब शुष्क विविक्त।
मति मूढ़ लिए भटकी जग में,भ्रम जीवन को करता फिर तिक्त।।
मन अस्थिर के रथवान बने,वह खींच रहे जब से उर रिक्त।
चित धीर रखा सम भाव जगा,नित इष्ट करें यह जीवन सिक्त।।
अनिता सुधीर आख्या
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Master of chemistry
पञ्चचामर छंद आधारित
मुक्तक
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अधर्म के विनाश को असत्य के निदान को।
सुलेखनी लिखे सदैव सत्य के विधान को।।
मशाल क्रांति की लिए बिना डरे चला करे
जगा सके सुषुप्त को भरे नई उड़ान को।।
अनिता सुधीर आख्या-
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
शिव-गिरिजा के लाल को,शत-शत करूँ प्रणाम।
प्रथम पूज्य गणपति प्रभो,आप विराजें धाम।।१।।
एकाक्षर के रूप का,अर्थ निहित अति गूढ़।
गजनासा मस्तक लिए,मूषक पर आरूढ़।।२।।
लंबोदर प्रिय नाम में,करें समाहित सृष्टि।
चार भुजा चहुँ ओर लें,रखें सूक्ष्म दृग दृष्टि।।३।।
विघ्न विनाशक कीजिए,सभी कष्ट का नाश।
बुद्धि प्रदाता दीजिए,जग को सत्य प्रकाश।।४।।
रिद्धि-सिद्धि शुभ-लाभ से,हो जीवन उजियार।
धर्म-कर्म का ज्ञान दे,करें शुद्ध आचार।।५।।
अनिता सुधीर आख्या-
हनुमान प्रकटोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
चैत्र मास की पूर्णिमा, प्रकट हुऐ हनुमान।
राम नाम उर में धरे, करें ईष्ट का ध्यान।।
मारुति नन्दन वज्र सम,रुद्र शिवा अवतार।
रामदूत हनुमान जी,करते बेड़ा पार।।
जपे नाम हनुमान का,मिटते सारे रोग।
भवसागर से तार दें,उत्तम जीवन भोग।।
सुमिरन कर हनुमंत का,दूर भागता काल।
दया करो मुझ दीन पर,हे अंजनि के लाल।।
भक्तों के दुख दूर हों,संकट मोचक आप।
प्रभु अपना आशीष दो,मिटे जगत का ताप।।
अनिता सुधीर आख्या
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चाल पासा चल गया अभियान में
ढेर होते सूरमा मैदान में।।
झूमता सा पद नशे में जब चला
दौड़ कुर्सी की लगी दालान में।।
चार दिन की चाँदनी धूमिल हुई
बीतती है उम्र भी पहचान में।।
मान कह के जो लिया तो क्या लिया
लीजिए इसको सभी संज्ञान में।।
नाम उनका ही अमर हो जाएगा
जो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।
शासकों का जब नया अवतार हो
नीतियाँ इतरा चलें उत्थान में।।
पाँव भी कब तक खड़े होंगे यहाँ
तीर सारे जब जुटे संधान में।।
अनिता सुधीर
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यात्रा
गंगोत्री से गंगासागर
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अपनी यात्रा का वृतांत सुनाती हूँ
अविरल,अविराम चलती जाती हूँ,
कहीं जन्मती ,कहीं जा समाती
मोक्षदायिनी गंगा कहलाती हूँ ।
पूर्वज भागीरथ के, भस्म शाप से
तपस्या से लाये,मुक्त कराने पाप से ,
शंकर की जटाओं से उतरी धरा पर
गंगोत्री हिमनद से चली मैदानों पर ।
पूरी कविता कैप्शन में
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बिरसा मुंडा
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काष्ठ
भाव उकेरे काष्ठ में, कलाकार का ज्ञान।
हस्तशिल्प की यह विधा, गाती संस्कृति गान।।
सजे चिता जब काष्ठ की, पावन हों सब कर्म।
गीता का उपदेश यह, समझें जीवन मर्म।।
चूल्हा ठंडा जब पड़े, सपने जाते सूख।
अग्नि काष्ठ की व्यग्र है,शांत करें कब भूख।।-