कमल पुरोहित   ('Aprichit')
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Joined 22 December 2017


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Joined 22 December 2017

हमें ज़मीं पे उतारा गया है किसके लिए
किसी किसी को ही ये इल्मियात होती है

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28 JUN 2024 AT 11:26

शायद अभी किसी की नज़र में नहीं हूँ मैं
चाहेगा ये जहान कभी टूटकर मुझे

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27 JUN 2024 AT 11:48

खोकर मुझे सुकून तुझे मिल गया है तो
क्यों याद करते रहते हो आठों पहर मुझे

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26 JUN 2024 AT 21:00

किस्सा मेरा बताऊं ज़माने से क्या भला
हिस्सों में सबने रख लिया हैं बाँट कर मुझे

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21 MAY 2024 AT 22:07

नहीं फ़ितरत बदलती है नहीं आदत बदलती है
ज़माने में कईं लोगो की बस शुहरत बदलती है
किसी को काम के पल याद करके देख लेना तुम
पता चल जायेगा लोगों की क्यों सूरत बदलती है

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19 MAY 2024 AT 23:22

साहिल से टकरा कर फिर से लौट रही हैं ये देखो
शायद प्यार समंदर का फिर खींच रहा है लहरों को

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23 NOV 2023 AT 13:27

एक शेर

आपको देखा तो दिल ये मेरा दीवाना हुआ
ज़िस्त में शामिल मेरे फिर एक अफ़साना हुआ

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21 NOV 2023 AT 13:57

अगर सीता ये चाहेगी मिले सोने का मृग उसको
बिछड़ना राम से उसका तो फिर हर हाल में होगा

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अभी बाक़ी सफ़र अपना अभी कुछ इम्तिहाँ होंगे
अकेले हैं मगर कुछ देर में ही कारवाँ होंगे

बिछड़ कर एक दिन तुमसे न जाने हम कहाँ होंगे
हँसी होगी लबों पर हम मगर आशुफ्तगाँ होंगे

अदब से नाम अपना सबके लब पर आ ही जायेगा
दिलों पे राज कर के एक दिन शाह ए शहाँ होंगे

हमारा दिल अभी तक बचपने में ही तो जीता है
अभी बचपन न बीता इसका तो कैसे जवाँ होंगे

तलातुम में बिखर कर कश्तियाँ लौटी किनारे पर
समंदर में ही इन सब कश्तियों के बादबां होंगे

कमल ग़ालिब वली ओ मीर  के आगे नहीं कुछ भी
मगर उसके भी तो कुछ और अंदाज़ ए बयाँ होंगे

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18 DEC 2022 AT 14:07

खिलते हैं "कमल" प्यार के ये फूल दिलों में।
फैलेगी जो खुशबू तो मिटेगी भी अदावत।

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