फूलों से सीखा हमने,क्षणभंगुरता का सार,
जीवन खिले तो सुंदर, मुरझाए तो भी स्वीकार।
जगत की हर वस्तु में छुपा,नश्वरता का अंकुर,
क्षण भर भी रहे पास उसको भी समझो पुरस्कार।-
बुद्ध नहीं,महलों में रहते,
यह बात,मैंने तब जानी,
जब उन्होंने मेरा स्पर्श छोड़,प्रकृति का स्पर्श चुना।
वो महल जहाँ मैंने चुपचाप दीप जलाए,
उनके स्वागत हेतु,
पास रहा पर,सिर्फ़ दीवारों का बोझ।
मैं जानती हूँ,,उनकी दृष्टि में मैं स्त्री नहीं थी
एक प्रश्न थी,,
उत्तरों की खोज में ,खो गए वो गहन वन में,,,
राहुल की अंगुली थाम,सीखा मैने ,कैसे रोटियाँ सेंकते हुए,,
स्त्री तपस्विनी बन जाती है।
और कैसे,,माँ होना
गृहत्याग से कम तप नहीं।
हाँ,बुद्ध नहीं महलों में रहते,,,
पर क्या कोई यशोधरा बोधिवृक्ष के नीचे
कभी कोई उत्तर पा सकती है??-
भगवान बुद्ध से सीखा,दु:ख न जीवन की हार है,
यह मात्र चित्त का बंधन, कामनाओं का व्यापार है।
जिसने देख लिया भीतर, वह मुक्त हुआ हर भार से,
ज्ञान न वेदों ग्रंथों में, यह मौन का विस्तार है।-
ज्ञान प्राप्त करना है, बुद्धि विवेक जगाना है,
विष माया के आंँगन में,अमृत दीप जलाना है।
कपट प्रपंच घोर यहांँ, छल का खेल पुराना है,
अनुभूति के सागर में अब,अंतस शांत बनाना।-
माँ की गोद में प्रश्न नहीं, उत्तर होते हैं,
छोटे-छोटे सुख भी वहाँ सागर होते हैं।
ममता की छाँव तले जितने पल बीते,
उन्हीं पलों में जीने के अवसर होते हैं।-
मांँ की गोद में बसी,सृष्टि की संजीवनी,
हर श्वास में बह रही, प्रेम की रस पावनी,
जिसकी लोरी से बहती,मन में शांति की रागिनी,
चरणों में इसके धाम सभी,मांँ स्वर्ग की चाँदनी,-
दिल के अरमां हैं, मिट जाए पाकिस्तान,
श्राप जो शांति का, वह जिए क्यों शैतान,
आतंक के बीज को बोया जिसने उम्र भर,
अब समय है चूर हो, टूटे उसका अभिमान।-
प्रार्थना करो,अग्नि बनें शौर्य के स्वर,
दुश्मनों का नाम मिटे,मिटे उसका दर।
जो उठे भारत विरोधी सोच लेकर,
राख में मिल जाए उसका हर मुकद्दर।-