.. तितलियों के रंग चुभते हैं.. कांटे.. फूलों से लगते हैं
अरे.. यह क्या .. यह कौन रूबरू सा है
दीवारों में कोई कुछ यूँ सा है.. के पत्थरों में उसकी ख़ुश्बू सी है..
पऱ क्यूँ माथे पे लहू सा है,
देखो ना.. यह आँसु भी उसका है.. यह हँसी भी उसी की है..
लाल बिंदी.. लाल चूड़ियाँ.. उफ़्फ़.. कितना ख़ूबसूरत लगता हूँ मैं..
जब आईने में सजता हूँ मैं,
श.. शश..चुप.. मैं सांस रोक कर बैठा हूँ..
सुबह से शाम हो गयी.. यह हवा कितनी बातें करती है,
मैं कितना बिछुड़ा-बिछुड़ा हूँ...
के दिन को तलब है महखाने की... औऱ मेरी रात कोठे पे बैठी है,
अच्छा.. क्या कहोगे ग़र में.. आग से बारिश कर दूँ तो..
चलो.. मैं दिखाता हूँ तुम्हें.. धूएँ से बादल कैसे हो जाते हैं...
मुहब्बत में.. पागल... ऐसे हो जाते हैं.. हा हाहा.. "मेरी तरह"
अब.. कोई साये से कह दो ना दूर रहे..
...मुझे अकेले में उससे मिलना है!!
"मनकीबातें" a.rana-
वो गुस्से में भी मुस्कुराते रहती है,
मालूम नही..वो पागल है या फिर दीवानी है...-
वो ज़ुल्फ़ों का आँचल मोहब्बत से पहले
किया मुझको घायल मोहब्बत से पहले
मेरे दिल में कुछ-कुछ लगातार होता
बजी उसकी पायल मोहब्बत से पहले
वो क़ातिल अदाएँ निगाहें नशीली
हुआ हूँ मैं पागल मोहब्बत से पहले
वो आँखों का काजल बनाए दीवाना
दिखे वो मुसलसल मोहब्बत से पहले
जो 'आरिफ़' के दिल पर है ढाए क़यामत
ये ज़ुल्फ़ों का बादल मोहब्बत से पहले-
"दिल में क्या दर्द है?
ये कोई जानता ही नहीं ।
किसी और हसीन चेहरे से,
ये दिल मानता ही नहीं ।
दिल तो पागल है,
इसे कौन समझाए?
ये चाहता है जिसे,
वो शक्स जानता ही नहीं ।"
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मुस्कुराता हैं ये दिल , तेरे ख्याल से
रोक लेता हैं मुझे , गहरे जज़्बात से |
छु कर , चुरा लेना चाहता हूं
तेरी यादों को इसकी गलियों से |
पागल , पागल केहता हैं मुझे
मेरा बावरा दिल |-
मन में मेरे मचल रहा है, वो पागल सा
दिल में भी घर कर गया है, वो पागल सा
मेरी इस मुस्कान को होंठों पर आता देख
मोम की तरह पिघल रहा है, वो पागल सा
आवाज़ देने पर भी पलटकर नहीं देखा
इस बात से कुछ जल गया है, वो पागल सा
आज सुर्ख़ रंग जो लगाया मैंने होंठों पर
ख़ुद का भी रंग बदल रहा है, वो पागल सा
लोग अब मुझे इतना तवज्जो क्यों देते हैं
इस बात से अब सहम गया है, वो पागल सा
प्यार भरा ख़त मैंने उसको लिखना चाहा था
मेरी कलम साथ लिए घूम रहा है, वो पागल सा
मुझसे बात करने की हिम्मत ही नहीं की कभी
"कोरे काग़ज़" ही सिर्फ़ भर रहा है, वो पागल सा-
इश्क के शहर में , मैं भी एक परिंदा था,
गैरों को अपना समझकर ख्वाबों में जिन्दा था ।-
वो किसी के इश्क़ में पागल मेरे जैसा हो..!!
𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹 𖧹
मेरी दुआ है उसका रकीब उसके जैसा हो..!!-
देख लेना एक दिन तुम भी रो दोगे
ये सोचकर की कोई था जिद्दी सा
चाहने वाला पागल पता नहीं कहा
चला गया अपनी जिद्द छोड़कर 😶-